"पदार्थ (भारतीय दर्शन)": अवतरणों में अंतर

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[[मनुष्य]] सर्वदा से ही विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वस्तुओं द्वारा चारों तरफ से घिरा हुआ है। [[सृष्टि]] के आविर्भाव से ही वह स्वयं की अन्तःप्रेरणा से परिवर्तनों का अध्ययन करता रहा है- परिवर्तन जो गुण व्यवहार की रीति इत्यादि में आये हैं- जो प्राकृतिक [[विज्ञान]] के विकास का कारक बना। सम्भवतः इसी अन्तःप्रेरणा के कारण महर्षि [[कणाद]] ने '[[वैशेषिक दर्शन]]' का आविर्भाव किया।
 
हम देखते हैं कि विभिन्न भारतीय दर्शनकारों ने पदार्थों की भिन्न-भिन्न संख्या मानी है। [[अक्षपाद गौतम|गौतम]] ने 16 पदार्थ माने, [[वेदान्त दर्शन|वेदान्तियों]] ने चित् और अचित् दो पदार्थ माने, [[रामानुजाचर्यरामानुजाचार्य|रामानुज]] ने उनमें एक ईश्वर और जोड़ दिया। [[सांख्यदर्शन]] में 25 तत्त्व हैं और [[मीमांसा|मीमांसा]] में8।में 8। वस्तुतः इन सभी दर्शनों में ‘पदार्थ’ शब्द का प्रयोग किसी एक विशिष्ट अर्थ में नहीं किया गया, प्रत्युत उन सभी विषयों का,जिनका विवेचन उन-उन दर्शनों में है, '''पदार्थ''' नाम दे दिया गया।
 
महर्षि कणाद ने भौतिक राशियों <sup>[1]</sup> (अमूर्त) को '''द्रव्य, [[गुण]], [[कर्म]], सामान्य, विशेष और समवाय''' के रूप में नामांकित किया है। यहाँ '[[द्रव्य]]' के अन्तर्गत ठोस ([[पृथ्वी]]), द्रव (अप्), [[ऊर्जा]] (तेजस्), गैस ([[वायु]]), प्लाज्मा ([[आकाश]]), समय ([[काल]]) एवं मुख्यतया सदिश [[लम्बाई]] के सन्दर्भ में दिक्, '[[आत्मा]]' और '[[मन]]' सम्मिलित हैं।<sup>[2]</sup> प्रकृत प्रसंग में वैशेषिक दर्शन का अधिकारपूर्वक कथन है कि उपर्युक्त द्रव्यों में प्रथम चार सृष्टि के प्रत्यक्ष कारक हैं,<sup>[3]</sup> और आकाश, दिक् और काल, [[सनातन]] और सर्वव्याप्त हैं।<sup>[4]</sup>