"पूर्णिमा": अवतरणों में अंतर

→‎पूर्णिमा के पर्व: चैत्र की पूर्णिमा के दिन प्रेम पूर्णिमा व्रत मनाया जाता है
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* [[माघ]] की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है।
* [[फाल्गुन]] की पूर्णिमा के दिन [[होली]] का पर्व मनाया जाता है।
[[चैत्र पूर्णिमां का व्रत कैसे रखे]]:-
जो पूर्णिमा का व्रत रखते है और अधिकतर चौदस के दिन व्रत रखते है तो,वे याद रखे की-ये व्रत चन्द्रमाँ का होता है यो दिन में किया गया व्रत सूर्य का गिना जाता है और उस समय चन्द्रमा को आपकी पूजा नहीं मिलती है और जो शाम को जब चन्द्रमा का उदय होता है,तब चंद्र को अर्ध्य देकर व्रत समाप्त करते है,ये गलत है,इससे कोई विशेष फल नहीं मिलता है,सीधी सी बात है,की जब चन्द्रमा शाम को आये,तब आपने उन्हें अर्ध्य देकर विदा कर दिया,जबकि शाम से ही उनका समय शुरू होता है और पूरी रात्रि रहकर प्रातः समापन होता है।यो आपको पूर्णिमा के व्रत को चौदस की शाम से अखण्ड ज्योति जलाकर और चन्द्रमा को अपना नमन करके उन्हें अपनी मनोकामना कहते हुए व्रत शरू करें और शाम का भोजन नहीं करे और रात्रि भर जप करें या चलो सो भी गए, तो तब अपने पूजाघर में सोये,जहाँ ज्योत जल रही है,वहां चटाई बिछाकर जबतक जप हो करें और थक जाने पर थोड़ा लेट ले और लेटे लेटे जप करें और जब कुछ आलस्य कम हो,तब फिर से बैठकर जप करें और इस बीच में ऐसा बार बार करने से आपको तन्द्रा यानि एक प्रकार की योग निंद्रा आएगी तब उसी में आपको इष्ट दर्शन या जो इच्छा है,उस सम्बंधित दर्शन होंगें, यदि अपने बिस्तर पर सोना चाहते है तो,उस पर उस रात्रि कोई अन्य नहीं सोये, आप अपने बिस्तरे की चादर स्वच्छ रखे और पवित्रता रखते हुए जप करते हुए सोये,बीच बीच में अपनी जलती ज्योत को देखे की वो बुझ नहीं जाये और तब प्रातः उठ कर स्नान करके अब चन्द्रमा को जाते हुए अर्ध्य दे और व्रत का समापन करें।
ये है पूर्णिमा का सही व्रत जिसे "चन्द्र व्रत" भी कहते है।
यदि आप ऐसा करते है तभी पूर्णिमा का व्रत का फल मिलेगा अन्यथा नहीं मिलेगा।
 
*चन्द्रमाँ को व्रत में क्या चढ़ाना चाहिए:-*
 
खीर सर्वोत्तम होती है क्योकि-उसमें चन्द्रदेव के सफेद चमकते हुए दिव्य प्रकाश जो की सत्य का रूप होता है जिसमें से सत्यनारायण और पूर्णिमां का संसार भर में अपने भक्तों पर दिव्य अनुग्रह बरस रहा होता है,यो उनके सफेद रंग की वस्तुओं का संकलन होता है- दूध+जल+चावल+मीठा+मेवा एक साथ होते है और श्रद्धा से जप करते उस खीर को बनाया जाता है,यो ये सम्पूर्ण अर्ध्य भोग होता है।
*स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी*
*जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः*
 
== सन्दर्भ ==