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[[चित्र:Malkhamb team of the Bombay Sappers.jpg|right|thumb|300px|मलखम्ब का प्रदर्शन करती हुई एक मलखम्ब टीम]]
'''मलखम्ब''' [[भारत]] का एक पारम्परिक [[खेल]] है जिसमें खिलाड़ी [[लकड़ी]] के एक उर्ध्व [[खम्भा|खम्भे]] या [[रस्सी]] के उपर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। वस्तुतः इसमें प्रयुक्त खम्भ को 'मल्लखम्भ' ही कहा जाता है। यह मध्य प्रदेश का राज्य खेल है
'''मल्लखंब - Mallakhamb. लेखक: डॉ आशीष मेहता'''
2013 में राज्य खेल घोषित कर दिया
 
 
भारत के देशज खेलों में कबड्डी के बाद एक खेल तेजी से अंतरराष्ट्रीय पटल पर उभर रहा है जिसे हम "मल्लखम्ब" के नाम से उदघोषित करते हैं। मल्लखंब दो शब्दों से मिलकर बना है मल्ल तथा खम्ब। इसका शाब्दिक अर्थ खंब के साथ मल्ल करना। मल्लखंब में लकड़ी के खंब पर विभिन्न योगासन, जिमनास्टिक तथा एक्रोबेटिक एक्सरसाइज की जाती है जिसका दृश्य खंब के साथ मल्ल जैसा हो जाता है अतः इस खेल को मल्लखंब कहते हैं इसका संस्कृतनिष्ठ वास्तविक उच्चारण "मल्लखंभ" है किंतु जनमानस में बोलचाल की भाषा में "मल्लखंब" प्रचलित है। मल्लखंब महज एक खेल नहीं अपितु अन्य सभी खेलों में निपुणता प्राप्त करने का एक सशक्त आधार भी है। यह खेल हमें शारीरिक तथा मानसिक रूप से मजबूत तथा क्रियाशील बनाता है।
 
== मल्लखंब क्या है ? ==
 
== What is Mallakhamb ? ==
 
== मल्लखंब से आशय लकड़ी का परिष्कृत खंबा, जिसे सामान्यतः जमीन में गाड़ा जाता है। मल्लखंब सागवान, सीसम या अंजन की लकड़ी का बना होता है। इसका आकार खंभे जैसा गोलाई में रहता है तथा जिसे मल्लखंब के क्षेत्र में भारत की शीर्ष संस्था मल्लखंब फेडरेशन ऑफ इंडिया की "तकनीकी समिति" के मापदंड अनुसार वरिष्ठ तथा कनिष्ठ खिलाड़ियों हेतु पृथक ऊंचाई (HEIGHT) तथा परिधि (CIRCUMFERENCE) में विशेष आकार एवं प्रकार में परिष्कृत किया जाता है। मल्लखंब का निचला हिस्सा मोटा रहता तथा ऊपर की ओर क्रमश: पतला होता जाता है उससे ठीक ऊपर लगभग 18 से 20 सेंटीमीटर हिस्सा मल्लखंब की शेष मोटाई से काफी पतला होता है जिसे गर्दन कहते हैं। सबसे ऊपरी भाग जिसे शीर्ष (TOP) कहते हैं वृत्ताकार होता है अर्थात मल्लखंब मनुष्य की आकृति के समान सबसे ऊपर सिर, फिर गर्दन तथा नीचे धड़ के सदृश्य होता है। यह मूल रूप या मुख्य प्रकार है इस पर बालक-बालिका तथा  पुरुष एवं महिला खिलाड़ियों द्वारा विशेष कॉस्च्यूम पहनकर प्रदर्शन किया जाता है। बालक एवं पुरुष खिलाड़ियों द्वारा खुले बदन मल्लखंब का अभ्यास किया जाता है अभ्यास के दौरान शरीर पर रगड़ न लगे तथा शरीर की पकड़ मल्लखंब पर मजबूत रहे,इस आशय से मलखंब पर अरंडी का तेल ( CASTOR OIL) प्रयोग किया जाता है वही हाथों की पकड़ मल्लखंब  पर मजबूत बनाने की दृष्टि से मैग्निशियम कार्बोनेट पाउडर ( MAGNESIUM CARBONATE POWDER ) का प्रयोग किया जाता है। यह पसीने को भी सोखता है। मल्लखंब एक प्राकृतिक खेल है, जिसमें प्रदर्शन करने वाला खिलाड़ी स्वयं के शरीर का वजन व्यायाम करने हेतु प्रयुक्त करता है। ==
 
 
'''मल्लखंब का इतिहास एवं विकास'''
 
भारत की प्राचीन सभ्यता की सांस्कृतिक विरासत के रूप में मल्लखंब भारत की एक विशिष्ट पहचान है। जिसका वृहत इतिहास तथा विकास की अपार एवं अनवरत् संभावनाएँ है।मल्लखंब के इतिहास की बात करें तो, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय के भी मल्लखंब के प्रमाण मिलते हैं वहीं कलयुग में 12वीं सदी के आसपास मल्लखंब का उदय माना जाता है। सन् 1135 में सोमेश्वर चालुक्य लिखित "मानसोल्लास"  ग्रंथ में भी मल्लखंब के सदृश्य चित्र देखने को मिलते हैं किंतु द्वापर युग व कलयुग का कोई भी प्रमाणिक अथवा अप्रमाणिक ग्रंथ देखने को नहीं मिलता है जो उस समय भारत में मल्लखंब के प्रचलन को प्रमाणित कर सके। आधुनिक काल में मल्लखंब का उद्भव 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में माना जाता है जिसका कई प्रमाणिक ग्रंथों में उल्लेख भी मिलता है। मल्लखंब के आविष्कार के बारे में प्रो.मजूमदार द्वारा 1938 में लिखित एवं प्रकाशित "व्यायाम कोश" के तृतीय भाग में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया था, तत्पश्चात् श्री खाजगीवाल, डॉ.आर.सी.अटाले, डॉ. के.बी. महाबल, प्रो. माणिक राव, श्री महेश अटाले,श्री रत्नाकर पटवर्धन एवं डॉ आशीष मेहता द्वारा लिखित पुस्तकों में मल्लखंब के बारे में वर्णन मिलता है। आधुनिक भारत में मल्लखंब के प्रादुर्भाव की एक अलौकिक घटना है। हैदराबाद के निजाम के आश्रय के दो शक्तिशाली पहलवान अली एवं गुलाब ने संपूर्ण भारत के पेशेवर पहलवानों को हराने के बाद देश के सर्वश्रेष्ठ पहलवान बनने की अदम्य इच्छा के साथ 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में पुना के पेशवा दरबार में अपनी जोड़ की कुश्ती की शर्त रखी। प्रतिदिन एक बकरा तथा सवा सेर  घी खाने वाले दोनों पहलवान अत्यंत बलशाली थे। राजाश्रय में उस समय उनकी जोड़ के पहलवान नहीं थे। इस बात से मुखातिब पेशवा बाजीराव द्वितीय के ख्यात शिक्षक श्री बालम् भट्ट दादा देवधर ने चुनौती स्वीकार कर ली। 6 माह बाद का समय निर्धारित किया गया। सर्वप्रथम दादा देवधर ने नियमित कठोर साधना के साथ नासिक जिले में वानी नामक स्थान पर सप्तश्रृंगी देवी का 21 दिन अनुष्ठान किया। देवी मां ने प्रसन्न होकर वर दिया कि साक्षात् हनुमान जी तुम्हें दर्शन देकर मार्गदर्शन करेंगे। ठीक वैसा ही हुआ। शक्ति एवं बुद्धि के आराध्य देव हनुमान जी ने दर्शन दिए तथा विशाल गोल लकड़ी पर मल्ल विधा मे सहायक अनेक आसन तथा उड़िया करके दिखाएं। दादा देवधर ने उन उड़ियों तथा व्यायाम को लकड़ी के खंभे पर नियमित रूप से कठोर अभ्यास कर अपनी देह को वज्र के समान सशक्त एवं बलशाली बनाया, तत्पश्चात् निर्धारित समय पर दर्शकों से खचाखच भरे स्टेडियम में अली के साथ दादा देवधर की कुश्ती प्रारंभ हुई। दादा ने अली को इतनी बुरी तरह से परास्त किया कि गुलाब बिना खेले दादा देवधर के समक्ष अपनी हार स्वीकार कर मैदान छोड़कर चला गया। कालांतर में दादा देवधर ने मल्लखंब पर कुश्ती के विभिन्न दाँव- पेंच तथा उड़ियों का अभ्यास कर अपनी उम्र से अधिक उम्र,अधिक वजन तथा अधिक ताकत वाले शक्तिशाली एवं नामी पहलवानों को शिकस्त दी। तभी से कुश्ती के पूरक व्यायाम के रूप में मल्लखंब का बहुतायत से प्रयोग होने लगा तथा कुश्ती व मल्लखंब के बीच अटूट संबंध कायम हो गया। दादा देवधर ने लकड़ी के जिस खंभे पर कुश्ती के दाँव- पेंच का अभ्यास किया। उस खंभे को उन्होंने मल्लखंब नाम दिया।
 
छत्रपति शिवाजी महाराज के राजाश्रय में उनके गुरु श्री समर्थ रामदास की प्रेरणा से महाराष्ट्र के प्रत्येक गांव में कुश्ती का अखाड़ा शुरू हुआ था, कालांतर में दादा देवधर द्वारा मल्लखंब का आविष्कार एवं इसकी अप्रतिम उपादेयता को देखकर उन सभी अखाड़ों में मल्लखंब भी प्रारंभ किया गया। इस  प्रकार महाबली हनुमान इस शास्त्र के प्रथम गुरु एवं मल्लखंब के जनक माने जाते हैं तथा उनके द्वारा प्रशिक्षित श्री बालम् भट् दादा  देवघर मलखंब खेल के आद्य प्रवर्तक के रूप में जाने जाते है। कालांतर में उन्होंने संपूर्ण भारत में मल्लखंब का प्रचार- प्रसार किया। अंग्रेजों के शासन काल में पुना की रियासत  से बेदखल होने के बाद पुना से कानपुर तक के रास्ते में जहाँ भी कुछ समय विराम लिया, वहाँ उन्होंने देशी खेल मल्लखंब प्रारम्भ किया।पूना, सूरत, अहमदाबाद, इंदौर, देवास ,उज्जैन, ग्वालियर, झांसी वाराणसी तथा कानपुर में उन्होंने तथा बाद में उनके शिष्य सम्प्रदाय द्वारा प्रारंभ किए गए मल्लखंब अखाड़े आज भी प्रज्वलित एवं प्रस्फुटित हो रहे हैं। बालम् भट् दादा देवघर के सुयोग्य शिष्य ग्वालियर निवासी श्री दामोदर गुरु मोघे ने संपूर्ण देश में भ्रमण कर जगह-जगह अखाड़े एवं व्यायामशाला की स्थापना कर उसमें परंपरागत खेल मल्लखंब को प्रारंभ किया तथा  साथ ही मल्लखंब की नवीन विधा बेंत मल्लखंब का आविष्कार किया, जो समय के साथ रस्सी मल्लखंब के रूप में परिवर्तित हुआ।श्री मोघे ही बाद में श्री 1008 अच्युतानंद स्वामी महाराज के नाम से इस खेल के प्रणेता के रूप में संपूर्ण राष्ट्र में प्रसिद्ध हुए।
 
भारत पर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान मल्लखम्ब सहित सभी कलाएँ एवं विधाएँ अस्त-व्यस्त होकर चरमरा गई थी किंतु उस दौर में भी श्री कोंडभट्टनाना गोडबोले (वाराणसी),श्री टक्केजमाल (बड़ौदा ),श्री जुम्मादादा (बड़ौदा),श्री नारायण गुरु देवधर  (वाराणसी),श्री दामोदर भट्ट मोघे (ग्वालियर), श्री अन्ना खानविलकर (झांसी), श्री रामचंद्र पेंटर (ग्वालियर), प्रो. राजरत्न मानिकराव (बड़ौदा), श्री प्रहलाद काले (मुंबई), श्री वसंतराव कप्तान (बड़ौदा) वैद्य श्री अंबादास पंत, श्री हरिहर राव देशपांडे (अमरावती) तथा श्री राजाराम अटाले (मुंबई), अदि कुछ गिने-चुने मल्लखंब प्रेमियों ने परतंत्रता की आंधी में भी मल्लखंब का दीपक जलाए रखा था।
 
आधुनिक भारत में 20वीं सदी के उतरार्ध एवं 21वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मल्लखंब के विकास एवं विस्तार में मल्लखंब महासंघ के संस्थापक सचिव डॉ. बमशंकर जोशी एवं श्री उदय वि. देशपांडे का अहिर्निश योगदान रहा है। डॉ. जोशी ने जहाँ भारतीय मल्लखंब महासंघ की स्थापना कर इस खेल को पुनर्जीवित किया तथा इस खेल के विकास की गति को सही दिशा प्रदान की, वही श्री देशपांडे ने भारतीय मल्लखंब महासंघ के महासचिव के पद पर रहते हुए न केवल भारत के विभिन्न प्रांतों में मल्लखंब के विकास को गति प्रदान की है वरन् विदेशी धरती पर मल्लखंब को पहचान दिलाने व उसकी उपयोगिता सिद्ध करने में महती भूमिका का निर्वहन किया है। मल्लखंब को विश्व पटल पर स्थापित करने में श्री उदय वि. देशपांडे के उल्लेखनीय योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।
 
'मलखम्ब' (शुद्ध, 'मल्लखम्भ') दो शब्दों से मिलकर बना है - 'मल्ल' (बलवान या योद्धा) तथा 'खम्भ' (खम्भा)।
प्रारंभ में गाँव-गाँव में मल्लखंब व्यायाम की तर्ज पर खेला जाता था। अखिल महाराष्ट्र शारीरिक शिक्षण मंडल ने सर्वप्रथम मल्लखंब के स्पर्धात्मक नियम बनाये। 1980 में भारतीय मल्लखंब महासंघ की स्थापना के साथ ही इंजीनियर श्री राकेश श्रीवास्तव, श्री उदय देशपांडे, श्री आर.एन. थत्ते ने मल्लखंब स्पर्धा में खिलाड़ियों के प्रदर्शन का एकरूप आंकलन करने के उद्देश्य से अन्य खेलों की तरह मल्लखंब के भी विस्तृत नियम बनाये, जिसे बाद में आधुनिकता के अनुरूप परिवर्तित एवं विस्तारित करने की दिशा में श्री महेश अटाले, श्री श्रेयस म्हस्कर,श्री सुहास पठारे, श्री विनायक राजमाचीकर,श्री पी. के. ओझा, श्री राहुल चौक्सी एवं श्रीमती संजीवनी पूर्णपात्रे के अहिर्निश प्रयासों से उत्कृष्टता प्रदान की जा सकी है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
राष्ट्रीय स्तर पर मल्लखंब की एक खेल के रूप में स्पर्धात्मक शुरुआत देश की राजधानी दिल्ली में 1958 में हुई, जब दिल्ली स्थित पहाड़गंज स्टेडियम में राष्ट्रीय जिम्नास्टिक चैंपियनशिप के अवसर पर मल्लखंब को प्रदर्शन खेल के रुप में सम्मिलित किया गया। साथ ही श्री रामदास कल्याणपूरकर, श्री शशिकांत व्यास, श्री भगवतराव पंत तथा श्री सुहास पठारे के प्रयासों से जिमनास्टिक फेड़रेशन ऑफ इंडिया द्वारा मल्लखंब को संबद्धता प्रदान करते हुए अगली राष्ट्रीय जिमनास्टिक चैंपियनशिप के साथ मल्लखंब की विधिवत स्पर्धा आयोजित करने का निर्णय लिया गया। पहली राष्ट्रीय मल्लखंब चैंपियनशिप 1962 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर में राष्ट्रीय जिम्नास्टिक चैंपियनशिप के एक भाग के रूप में आयोजित की गई। भारतीय जिम्नास्टिक महासंघ द्वारा 1962 से 1976 तक नियमित रूप से प्रतिवर्ष राष्ट्रीय मल्लखंब चैंपियनशिप भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में आयोजित की जाती रही। खेल मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एक खेल एक महासंघ के आदेश जारी किए जाने पर 1977 में जिम्नास्टिक महासंघ द्वारा मल्लखंब की संबद्धता समाप्त कर दी गई। 1977 से 1980 तक मल्लखंब खिलाड़ियों तथा शुभचिंतकों की स्थिति काफी कठिनाई भरी रही, क्योंकि इस दौरान मल्लखंब का संगठित स्वरूप बिखर जाने से किसी भी अधिमान्य राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन नहीं हो सका था। मल्लखंब की इस स्थिति ने युवा मल्लखंब खिलाड़ियों व शुभचिंतकों को झकझोर दिया। इस स्थिति से उबरकर मल्लखंब को पुनः राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का सपना संजोकर उज्जैन निवासी डॉ. बमशंकर जोशी, इंजीनियर श्री राकेश श्रीवास्तव श्री महादेव भारद्वाज एवं श्री राजेश श्रीवास्तव सहित कुछ अन्य मल्लखंब वीरों ने 21-11- 1980 को उज्जैन में एक अखिल भारतीय स्तर के मल्लखंब संगठन की स्थापना की। जो बाद में भारतीय मल्लखंब महासंघ (Mallakhamb fedration of India) के रूप में प्रतिस्थापित हुआ। इस नवीन संगठन की छत्र-छाया में पहली राष्ट्रीय मल्लखंब चैंपियनशिप का आयोजन न्यू सपोर्ट्स संगठन द्वारा 27 से 29 जनवरी 1981 को मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में किया गया। जिसमें देशभर से मल्लखंब प्रतिभागियों एवं प्रतिनिधियों ने काफी उत्साह के साथ हिस्सा लिया। इस अवसर पर 29 जनवरी 1981 को आयोजित सभा में डॉ. बमशंकर जोशी, श्री राकेश श्रीवास्तव, श्री आर. एस. कल्याणपूरकर,श्री सुहास पठारे,श्री जे.बी. घोष, श्री पी.बी.टेंबे,श्री राजेश श्रीवास्तव, श्री देवकीनंदन शर्मा, श्री प्रदीप व्यास एवं श्री उदय देशपांडे की उपस्थिति में अधिकृत रूप से भारतीय मल्लखंब महासंघ की स्थापना की घोषणा की गई। जिसका विधिवत पंजीयन 7 जून 1984 को फर्म्स एवं संस्थाएं, मध्यप्रदेश शासन द्वारा किया गया। मल्लखंब के इस नवीन संगठन भारतीय मल्लखंब महासंघ के बैनर तले 1981 से अनवरत् मल्लखंब की राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन भारत के विभिन्न प्रांतों में किया जा रहा है। आधुनिक भारत में ठेठ भारतीय खेल मल्लखंब के विकास एवं इस खेल को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पटल पर स्थापित व विस्तारित करने की दिशा में जिन मल्लखंब प्रेमियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उनमें सर्वश्री महादेव भारद्वाज, श्री शेखर बनाफ़र, श्री उदय वि. देशपांडे, श्री आर.एन. थत्ते, श्री पी.के. ओझा, श्री महेंद्र चेंबूरकर, श्री किशोरी शरण श्रीवास्तव, श्री मूलचंद  सिकोरिया, श्री विनायक राजमाचिकार, श्री राहुल चौक्सी,  श्री श्रेयस म्हस्कर,श्री महेश अटाले, श्री दत्ताराम दुधम, श्री यतिन केलकर, डॉ. रमेश इंडोलिया,श्री सुजीत शेंडगे, श्रीमती शशि सुर्वे, श्री सत्यजीत शिंदे, श्री विश्वतेज मोहित, श्री अभिजीत भौंसले,श्री नारायण नारायण कुराडे, श्री एन. जयचंद्रन,श्री प्रेमचंद भानपुरिया,श्री अखिलेश ब्रह्मचारी,श्री बाबा साहेब समलेवाले, श्री दिलीप गवाने, श्री प्रकाश टांडी, श्री राजेंद्र शर्मा, श्री भूपेंद्र मालपुरे, श्री स्वप्निल वड़के, श्री सचिन परदेशी,श्री संजय रायचुरकर, श्री कन्हैयालाल ममोड़िया, श्री प्रकाश सोनी, श्री प्रताप सुसरे,श्री मनोहर सिंह डोडिया, श्री संतोष राठौड़,श्री एस. रामचंद्रन, श्री के. गणेश,श्री श्री अनिल पटेल श्री रवि प्रकाश श्री योगेश मालवीय श्री मोहनलाल बंबोरिया एवं कु. तरुणा चावरे प्रमुख है।
 
मल्लखंब के उपकरणों तथा संरचना को आधुनिक बदलाव के साथ प्रस्तुत करने का श्रेय समर्थ व्यायाम मंदिर, दादर ,मुंबई के श्री  श्रेयस म्हस्कर को जाता है जिनके अथक प्रयासों एवं उच्च तकनीकी प्रयोग से मल्लखंब उपकरणों को नवीन एवं परिष्कृत रूप में प्रस्तुत किया जाना संभव हो सका है।
[[श्रेणी:भारत के पारम्परिक खेल]]
[[श्रेणी:व्यायाम]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/मलखंब" से प्राप्त