"वोले शोयिंका": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Soyinka, Wole (1934).jpg|thumb|right|200px|वोले शोयिंका]]वोले शोयिंका-(पूरा नाम अकिन्वान्डे ओलुवोले शोयिंका)([[१३ जुलाई]] [[१९३४]]-) १९८६ में [[साहित्य]] के लिए [[नोबेल पुरस्कार]] से सम्मानित [[अफ्रीका]] के पहले साहित्यकार हैं। उनका जन्म ओगुन राज्य में स्थिति अव्योकुटा कस्बे में हुआ था। इनके पिता एनिओला शोंयिंका एक अध्यापक थे और मां आयोडेले (इया) ओलुवोले अपनी दुकान चलाती थीं। इस दम्पति ने [[ईसाई धर्म]] को स्वीकार कर लिया था इसलिए बालक शोयिंका का बपतिस्मा संस्कार हुआ। लेकिन बचपन से ही बालक शोयिंका पर अपने दादा के मूल योरूबा प्रकृति धर्म (एनिमिज्म) पर अटल रहने का गहरा प्रभाव पड़ा। इसी के फलस्वरूप उनके मन मनुष्य के प्रति अगाध आस्था जनमी। आगे चलकर योरूबा जनजाति की [[भाषा]] और [[संस्कृति]] से अभिन्न जुड़ाव का उनकी सृजनात्मकता में अद्भुद उपयोग हुआ। युवा होते-होते १९६३ में वोले शोयिंका ने ईसाई धर्म सार्वजनिक रूप से परित्याग करके प्रकृति धर्म में आस्था व्यक्ति की और उनकी पुर्नस्थापना के लिए प्रयत्नशील हो गए।<ref>{{cite web|url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=5760|title=वोले शोयिंका की कवितायें|access-date=[[१० अगस्त]] [[२००९]]|format=पीएचपी|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20100814123602/http://pustak.org/bs/home.php?bookid=5760|archive-date=14 अगस्त 2010|url-status=dead}}</ref> रायल कोर्ट थियेटर लंदन में प्ले-रीडर के रूप में जीवन आरम्भ करके वह [[नाइजीरिया]] के कई विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी साहित्य और नाट्य कला के प्राध्यापक रहे। कालान्तर में लेगान विश्वविद्यालय [[घाना]] और शेफील्ड विश्वविद्यालय [[इंग्लैण्ड]] में विजिटिंग प्रोफेसर और चर्चित कालेज [[कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय]] इंगलैण्ड व कॉर्नेल विश्वविद्यालय अमरीका के फैलो बने। अपनी प्रतिबद्धताओं और अभिव्यक्ति के कारण कई बार जेल यात्रा करनी पड़ी।
 
अश्वेत अफ्रीका की परंपरा, संस्कृति और धार्मिक विश्वास में युगों-युगों से रचे-बसे मिथकों की काव्यात्मकता और उनकी नई रचनात्मक सम्भावनाओं को शोयिंका ने ही पहली बार पहचाना। प्राचीन यूनानी मिथकों की आधुनिक यूरोपीय व्याख्या से प्रेरित हो उन्होंने योरूबा देवमाला की सर्वथा नई दृष्टि से देखा। साहित्य और कला के अपार रचना-सामर्थ्य को प्रतिबिम्बित करने वाले योरूबा देवता ओगुन इस नव्य दृष्टिकोण को रेखांकित करती है। उनकी कविताओं के अनुवाद हिंदी में भी पढ़े जा सकते हैं।<ref>{{cite web|url=http://taana-baana.blogspot.com/2008/11/blog-post_10.html|title=तुम छोड़ जाती हो ...सतह पर|access-date=[[१० अगस्त]] [[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=तानाबाना|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20160305121129/http://taana-baana.blogspot.com/2008/11/blog-post_10.html|archive-date=5 मार्च 2016|url-status=livedead}}</ref>
 
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