"गवरी": अवतरणों में अंतर
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वादन संवाद, प्रस्तुतिकरण और लोक-संस्कृति के प्रतीकों में [[मेवाड़]] की [[गवरी]] निराली है। गवरी का उदभव शिव-भस्मासुर की कथा से माना जाता है। इसका आयोजन रक्षाबंधन के दुसरे दिन से शुरू होता है। गवरी सवा महीने तक खेली जाती है। इसमें भील संस्कृति की प्रमुखता रहती है। यह पर्व आदिवासी जाती पर पौराणिक तथा सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है। गवरी में मात्र पुरुष पात्र होते हैं। इसके खेलों में गणपति काना-गुजरी, जोगी, लाखा बणजारा इत्यादि के खेल होते हैैं।
इसमें शिव को "पुरिया" कहा जाता है।
== पात्र ==
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