"कुमारपाल": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Taranga2.jpg|thumb|right|300px|[[श्री तरंग तीर्थ]] या तरंगा मंदिर जिसका निर्माण कुमारपाल ने करवाया]]'''कुमारपाल''' [[सोलंकी वंश|चौलुक्य]] (सोलंकी) राजवंश का राजा था। इनके राज्य की राजधानी गुजरात के अनहिलवाडा (आधुनिक काल में सिद्धपुर पाटण) में थी। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म विक्रम संवत [[११४९]] में, राज्याभिषेक ११९९ में और मृत्यु [[१२३०]] में हुई। ईस्वी संवत के अनुसार उनका राज्य [[११३०]] से [[११४०]] माना जाता है। तदनुसार उनके जन्म का समय ईसा के पश्चात [[११४२]] से [[११७२]] तक सिद्ध किया गया है। पालवंश के राजा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विकास के लिए जाने जाते हैं।<ref>{{cite book |last=नाहर |first=डॉ॰ रतिभानु सिंह|title= प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास|year= १९७४ |publisher= किताब महल|location= इलाहाबाद, भारत|id= |page= ५९४|editor: |access-date= १ फरवरी २००८}}</ref> इस परंपरा का पालन करते हुए कुमारपाल ने भी शास्त्रों के उद्वार के लिये अनेक पुस्तक भंडारों की स्थापना की, हजारों मंदिरों का जीर्णोद्धार किया और नये मंदिर बनवाकर भूमि को अलंकृत किया। उसको [[वीरावल]] के प्रसिद्ध [[सोमनाथ मंदिर]] का जीर्णोद्धारकर्ता भी माना गया है। उसने जिन मंदिरों का निर्माण किया उनमें [[१२२१]] में निर्मित [[गुजरात]] का [[श्री तरंग तीर्थ|तरंगा मंदिर]]<ref>{{cite web|url=http://www.jainjagat.com/viewtemple.php/Tirthankars/Ajitnath/54|title=Shri Taranga Teerth|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=पीएचपी|publisher=जैनजगत.ऑर्ग|language=अंग्रेज़ी|archive-url=https://web.archive.org/web/20060813195622/http://www.jainjagat.com/viewtemple.php/Tirthankars/Ajitnath/54|archive-date=13 अगस्त 2006|url-status=livedead}}</ref>, [[श्री अचलगढ़ तीर्थ|भगवान शांतिनाथ का मंदिर]]<ref>{{cite web|url=http://www.pilgrimage-india.com/jain-pilgrimage/jain-tirth-yatra.html|title=Jain Tirth Yatra|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=एचटीएमएल|publisher=पिलग्रिमेजइंडिया.कॉम|language=अंग्रेज़ी|archive-url=https://web.archive.org/web/20080219092232/http://www.pilgrimage-india.com/jain-pilgrimage/jain-tirth-yatra.html|archive-date=19 फ़रवरी 2008|url-status=dead}}</ref> तथा श्री [[तलज तीर्थ]]<ref>{{cite web|url=http://www.jainjagat.com/viewtemple.php/Tirthankars/Pushpadanta(Suvidhinatha)/29|title=Shri Talaja Teerth|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=पीएचपी|publisher=जैनजगत.कॉम|language=अंग्रेज़ी|archive-url=https://web.archive.org/web/20060813185109/http://www.jainjagat.com/viewtemple.php/Tirthankars/Pushpadanta(Suvidhinatha)/29|archive-date=13 अगस्त 2006|url-status=dead}}</ref> प्रसिद्ध है।
 
यही नहीं हथकरघा तथा अन्य हस्तकलाओं का भी कुमारपाल ने बहुत सम्मान और विकास किया। कुमारपाल के प्रयत्नों से पाटण पटोला (रेशम से बुना हुआ विशेष कपड़ा तथा साड़ियाँ) का सबसे बड़ा केन्द्र बना और यह कपड़ा विश्वभर में अपनी रंगीन सुंदरता के कारण जाना गया।<ref>{{cite web|url=http://www.nif.org.in/patan|title=Adding life to a centuries’ old dyeing art-Patan|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=|publisher=निफ़.ऑर्ग.इन.|language=अंग्रेज़ी|archive-url=https://web.archive.org/web/20160304225201/http://nif.org.in/patan|archive-date=4 मार्च 2016|url-status=dead}}</ref> अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे गए और गुजरात जैन धर्म, शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र बन गया।<ref>{{cite web|url=http://www.jaintirths.com/general/jainpatrons.htm|title=Jain Tirths|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=एचटीएम|publisher=जैनतीर्थ्स.कॉम|language=अंग्रेज़ी|archive-url=https://web.archive.org/web/20080530001921/http://www.jaintirths.com/general/jainpatrons.htm|archive-date=30 मई 2008|url-status=dead}}</ref> उसने पशुवध इत्यादि बंद करवा के गुजरात को अहिंसक राज्य घोषित किया। उसकी धर्म परायणता की गाथाएँ आज भी अनेक जैन-मंदिरों की आरती और मंगलदीवो में आदर के साथ गाई जाती हैं।<ref>{{cite web|url=http://www.geocities.com/bhavna_shah/AratiMangalDivo.htm|title=Ärati & Mangal Deevo|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=|publisher=भावना शाह|language=अंग्रेज़ी|archiveurl=https://web.archive.org/web/20040914091138/http://www.geocities.com/bhavna_shah/AratiMangalDivo.htm|archivedate=14 सितंबर 2004|url-status=dead}}</ref> इन्होंने स्वर्गीय महाराजा सिद्धराज जयसिंह जी द्वारा नाराज राजपुत सरदार जो की आबू नरेश महाराजा विक्रमसिंह परमार के राज में सन 1191 से 1199 राजपुत घाँची जाति ग्रहण किये हुए ठहरे थे, उन सभी सरदारों को सन 1199 में उन्होंने सभी 14 जातियों के सरदारो को अहिलनवाड़ा बुलाकर पुनः लौटने का आग्रह किया गया पर उनमें से कुछ सरदार पुनः अहिलनवाड़ा जाकर अपनी मूल पहचान ग्रहण कर ली व बाकी सरदारो ने क्षत्रिय लाठेचा सरदार [[ राजपुत घाँची]]<nowiki/>जाति के रूप में राजपुताना में ही रहना स्वीकार किया जब कुमरपाल के राज्य की सीमा जैसलमेर तक लगने लगी तो उन्होंने अपने द्वारा स्थापित क्षत्रिय सरदारो के लिए मारवाड़ रियासत के पाली कस्बे में उन क्षत्रिय लाठेचा सरदारो के लिए इष्टदेव सोमनाथ महादेव मंदिर का निर्माण अपने राजकोषीय व्यय से करवाया ताकि सभी 13 जातियों के सरदार अपने इष्टदेव को राजपुताना में रहते हुए याद कर सके ।