"सर्पगन्धा": अवतरणों में अंतर
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दो-तीन साल पुराने पौधे की जड़ को उखाड़ कर सूखे स्थान पर रखते है, इससे जो दवाएँ निर्मित होती हैं, उनका उपयोग [[उच्च रक्तचाप]], [[गर्भाशय]] की दीवार में संकुचन के उपचार में करते हैं। इसकी पत्ती के रस को निचोड़ कर [[आँख]] में दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग [[मस्तिष्क]] के लिए औषधि बनाने के काम आता है। अनिद्रा, हिस्टीरिया और मानसिक तनाव को दूर करने में सर्पगन्धा की जड़ का रस, काफी उपयोगी है। इसकी जड़ का चूर्ण पेट के लिए काफी लाभदायक है। इससे पेट के अन्दर की कृमि खत्म हो जाती है।
== सर्पगंधा का इतिहास ==
सर्पगंधा का रूचिकर इतिहास<ref>{{Cite web |url=http://www.scientificworld.in/2015/02/sarpagandha-tree-in-hindi.html?m=0 |title=भारत में संकटग्रस्त बहुमूल्य औषधीय वनस्पति सर्पगंधा |access-date=25 फ़रवरी 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150225130037/http://www.scientificworld.in/2015/02/sarpagandha-tree-in-hindi.html?m=0 |archive-date=25 फ़रवरी 2015 |url-status=
सर्पगंधा के नामकरण को लेकर भी विभिन्न मत हैं। एक ऐसे ही मत के अनुसार इस वनस्पति का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा क्योंकि सर्प इस वनस्पति की गंध पाकर दूर भाग जाते हैं। दूसरे मत के अनुसार चूंकि सर्पगंधा की जड़े सर्प की तरह लम्बी तथा टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं इसलिए इसका नाम सर्पगंधा पड़ा है। लेकिन उक्त दोनों मत भ्रामक तथा तथ्यहीन हैं। पौधे का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा है क्योंकि प्राचीन काल में विशेष तौर पर इसका उपयोग सर्पदंश के उपचार में विषनाशक के रूप में होता था। सत्रहवीं शताब्दी में फ्रेन्च वनस्पतिशास्त्री प्लूमियर्स (Plumiers) ने सर्पगंधा का जेनेरिक नाम राओल्फिया, सोलहवीं शताब्दी के आगस्बर्ग (Augsburg) जर्मनी के प्रख्यात फिजिशियन, वनस्पतिशास्त्री, यात्री तथा लेखक लियोनार्ड राओल्फ (Leonard Rauwolf) के सम्मान में दिया था।
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