"मुंडा विद्रोह": अवतरणों में अंतर
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[[मुण्डा|मुंडा]] जनजातियों ने 18वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक कई बार अंग्रेजी सरकार और भारतीय शासकों, जमींदारों के खिलाफ [[विद्रोह]] किये। [[बिरसा मुंडा]] के नेतृत्व में 19वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है। जब बिरसा पूर्ती(मुंडा) के आदिवासियों के साथी ईसाई मिशनरीयों का पद्री था। पद्री के पास इस बात को सिकयत करने गए की गैरआदिवसी जमीन छीन रहें हैं । लोंगो ने [[मुंडारी]] में कहा कि (शयोब आलेया ओते कोको राढ़ीबड़ी को (दिकु)रेए जद लेआ।) मतलब सहब हमारे जमीन गैरआदिवसी छीन रहे हैं। ईसाई मिशनरी ने [[हिन्दी]] [[भाषा]] में कहा की राढ़ीबड़ी को कटो। मिशनरी ने हलका मुंडारी भाषा जनकारी था।
उसने कहा कि दिकू (राड़ीबड़ी [[कोदो]] (डाली) महा कोपे)आदिवासियों ने समझा की (राड़ी कोतो महायपे)आदिवासियों ने समझा कि राड़ की डाली कटने कहा है। (राड़ी [[कोतो]] (डाली) महय कजिया कदा) मुरहू के आसपास गाँव में बाड़े फैमाने पर सरदारों का राड़ दाल खेती था। लोगों ने राड़ कटना शुरु किया। तभी राड़ मलिक सरदार लोंगो ने पुछा किसने कहा है। आदिवसयों ने ईसाई मिशनरीयों को ईशारे किया फिर सरदार ने ईसाई मिशनरीयों के खिलाफ जंग छेड़ दिया। उसके बाद ईसाई मिशनरीयों के निशाने बनाया। काई वर्ष बाद मिशनरीयों के खिलाफ जंग छोड़ दिया। फलस्वरूप आज भी आदिवासियों को ईसाई मिशनरीयों के लड़ाई करवाते है।<ref>{{Cite web |url=http://www.egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/25800/1/Unit15.pdf |title=संग्रहीत प्रति |access-date=5 जून 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20120417113846/http://www.egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/25800/1/Unit15.pdf |archive-date=17 अप्रैल 2012 |url-status=dead }}</ref> इसे [[मुंडा विद्रोह|उलगुलान]](महान हलचल) नाम से भी जाना जाता है। मुंडा विद्रोह झारखण्ड का सबसे बड़ा और अंतिम रक्ताप्लावित जनजातीय विप्लव था, जिसमे हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए।<ref>{{Cite web |url=http://www.rrtd.nic.in/Jharkhand.html |title=संग्रहीत प्रति |access-date=5 जून 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20111202090525/http://www.rrtd.nic.in/Jharkhand.html |archive-date=2 दिसंबर 2011 |url-status=
== विद्रोह की पृष्ठभूमि ==
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