"मनमोहन सिंह": अवतरणों में अंतर

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== राजनीतिक जीवन ==
 
1985 में [[राजीव गांधी]] के शासन काल में मनमोहन सिंह को [[भारत का योजना आयोग|भारतीय योजना आयोग]] का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने निरन्तर पाँच वर्षों तक कार्य किया, जबकि १९९० में यह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। जब [[पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव|पी वी नरसिंहराव]] प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को १९९१ में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो [[लोक सभा|लोकसभा]] और न ही [[राज्य सभा|राज्यसभा]] के सदस्य थे। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें १९९१ में [[असम]] से राज्यसभा के लिए चुना गया।<ref>{{Cite web|url=http://hindi.webdunia.com/prime-minister-of-india/dr-manmohan-singh-profile-119030600076_1.html|title=Dr. Manmohan Singh profile। डॉ. मनमोहनसिंह : देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकाला|last=Webdunia|website=hindi.webdunia.com|language=hi|access-date=2020-09-06}}</ref>
 
मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा।<ref name=":1">{{Cite web|url=https://www.aajtak.in/elections/photo/manmohan-singh-167674-2012-09-26|title=प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अनदेखी तस्वीरें|website=आज तक|language=hi|access-date=2020-09-06}}</ref> विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा।<ref name=":1" /> मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।