"रामवृक्ष बेनीपुरी": अवतरणों में अंतर

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'''रामवृक्ष बेनीपुरी''' ([[२३ दिसंबर]], [[१८९९|१८९९]] - [[७ सितंबर]], [[१९६८]]) [[भारत]] के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे।वेथे। वे [[हिन्दी साहित्य]] के [[आचार्य रामचंद्र शुक्ल|शुक्लोत्तर युग]] के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
 
==परिचय==
इनका जन्म [[२३ दिसंबर]], [[१८९९]] को उनके पैतृक गांवगाँव [[मुजफ्फरपुर जिला|मुजफफरपुर जिले]] ([[बिहार]]) के '''बेनीपुर गांवगाँव''' के एक [[भूमिहर ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। उसी के आधार पर उन्होंने अपना उपनाम 'बेनीपुरी' रखा था। उनकी प्राथमिक शिक्षा ननिहाल में हुई थी। मैट्रिक पास करने के बाद वे [[असहयोग आंदोलन]] में शामिल हो गये। उनकी भाषा-वाणी प्रभावशाली थी। उनका व्यक्तित्त्व आकर्षक एवं शौर्य की आभा से दीप्त था। वे एक सफल संपादक के रूप में भी याद किये जाते हैं।<ref name="कपूर">{{cite book
|last= कपूर
|first= मस्तराम
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|archive-date=24 अक्तूबर 2008
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}}</ref> ये [[हिन्दी साहित्य]] के पत्रकार भी रहे और इन्होंने कई समाचारपत्रोंसमाचारपत्र जैसे ''युवक'' (१९२९) भी निकाले। इसके अलावा ये कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में संलग्न रहे।<ref>{{cite book
| first = शिशिर कुमार
| last = दास
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== रचनाएँ ==
रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना लहू के संग लहू के रूप में बहती थी जिसके कारण आजीवन वह चैन की सांससाँस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ता।पड़ा। सन् १९४२ में [[अगस्त क्रांति आंदोलन]] के कारण उन्हें [[हजारीबाग]] जेल में रहना पड़ा। जेलवास में भी वह शान्त नहीं बैठे सकते थे। वे वहांवहाँ जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते।लिखते थे। जब भी वे जेल से बाहर आते उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियांपाण्डुलिपियाँ अवश्य होतीं थी, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गईं। उनकी अधिकतर रचनाएं जेलवास की कृतियांकृतियाँ हैं।
 
सन् १९३० के कारावास काल के अनुभव के आधार पर '''पतितों के देश में''' [[उपन्यास]] का सृजन हुआ। इसी प्रकार सन् १९४६ में अंग्रेज भारत छोड़ने पर विवश हुए तो सभी राजनैतिक एवं देशभक्त नेताओं को रिहा कर दिया गया। उनमें रामवृक्ष बेनीपुरी जी भी थे। कारागार से मुक्ति की पावन पवन के साथ साहित्य की उत्कृष्ट रचना [[माटी की मूरतें]] रेखाचित्र और '''आम्रपाली''' उपन्यास की पाण्डुलिपियांपाण्डुलिपियाँ उनके उत्कृष्ट विचारों को अपने अन्दर समा चुकी थीं। उनकी अनेक रचनायें जो यश कलगी के समान हैं उनमें '''जय प्रकाश''', '''नेत्रदान''', '''सीता की मांमाँ''', 'विजेता', 'मील के पत्थर', 'गेहूंगेहूँ और गुलाब' शामिल है।हैं। 'शेक्सपीयर के गांवगाँव में' और 'नींव की ईंट'; इन लेखों में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता, साहित्यकारों के प्रति सम्मान भाव दर्शाया है वह अविस्मरणीय है।<ref name="कपूर"/>
<!-- इंगलैंड में [[शेक्सपियर]] के प्रति जो आदर भाव उन्हें देखने को मिला वह उन्हें सुखद भी लगा और दु:खद भी। शेक्सपियर के गांवगाँव के मकान को कितनी संभाल, रक्षण-सजावट के साथ संभाला गया है। उनकी कृतियों की मूर्तियों बनाकर वहांवहाँ रखी गई है, यह सब देख कर वे प्रसन्न हुए। पर दुखी इस बात से हुए कि हमारे देश में सरकार भूषण, बिहारी, सूरदास, जायसी आदि महान साहित्यकारों के जन्म स्थल की सुरक्षा या उन्हें स्मारक का रूप देने का प्रयास नहीं करती। उनके मन में अपने प्राचीन महान साहित्यकारों के प्रति अति गहन आदर भाव था। इसी प्रकार 'नींव की ईंट' में भाव था कि जो लोग इमारत बनाने में तन-मन कुर्बान करते है, वे अंधकार में विलीन हो जाते हैं। बाहर रहने वाले गुम्बद बनते हैं और स्वर्ण पत्र से सजाये जाते हैं। चोटी पर चढ़ने वाली ईंट कभी नींव की ईंट को याद नहीं करती।<ref name="कपूर"/> -->
 
उनकी रचनाओं का विस्तृत विवरण इस प्रकार है-