"सरल बहुमत प्रणाली": अवतरणों में अंतर
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'''फर्स्ट पास्ट द पोस्ट''' (सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय) प्रणाली सबसे प्राचीन है।<ref>{{cite web |url= https://hindi.oneindia.com/dictionary/first-past-the-post-meaning-in-hindi/ |title= First past the post Meaning in Hindi |date= |website= hindi.oneindia.com |publisher= |access-date=17 February 2018}}</ref> यह प्रणाली [[ब्रिटेन]] में तेरहवीं शताब्दी से ही प्रचलित रही है।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/news/2011/05/110506_uk_referendum_psa|title=वैकल्पिक चुनाव प्रणाली को 'ना'}}</ref> राष्ट्रमंडल के देशों और अमेरिका में मतदान की यही सर्वसामान्य प्रणाली है। [[भारत]] में लोकसभा एवं विधान सभाओं के चुनावों में इसी प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। इसे "सरल बहुतमत प्रणाली" भी कहते हैं। जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं वही चुन लिया जाता है।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.co.uk/academy/hi/articles/art20150408153041113|title=ब्रिटिश चुनाव शब्दावली}}</ref>
यह प्रणाली सामान्यत: एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली से संबद्ध होती है। इस प्रणाली की आलोचना में तीन बातें कही जाती हैं।<ref>{{cite web|url=https://navbharattimes.indiatimes.com/elections/lok-sabha-elections/news/first-past-the-post-system-not-whole-representative-but-practical-expert/articleshow/69252867.cms|title=फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम : ‘पूरी तरह से प्रतिनिधित्व’ करने वाली नहीं लेकिन व्यावहारिक: विशेषज्ञ}}</ref> पहली यह कि इसके अंतर्गत सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार निर्वाचित हो जाता है, भले ही निर्वाचक मंडल के काफी बड़े समुदाय ने उसके विरुद्ध मत दिए हों। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा निर्वाचित होने पर भी वह विरुद्ध मत रखने वाले बहुसंख्यक समुदाय का भी प्रतिनिधि बन जाता है। भारत के 1952 के प्रथम निर्वाचन में अनेक विजयी उम्मीदवारों के मामले में यही हुआ था। दूसरी बात यह है कि यह प्रणाली ब्रिटेन के समान द्विदलीय परंपरा के ही अनुकूल होती है किंतु उससे दुर्बल और अल्पसंख्यक दलों का सफाया हो जाता हैं। उसमें विभिन्न प्रकार के अल्पसंख्यक समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व ही नहीं मिल पाता। तीसरी बात यह है कि यह प्रणाली प्राय: मतदाताओं के ऐसे समुदायों को जिन्हें थोड़ा ही अधिक बहुमत प्राप्त है, सदन में बहुत बढ़ा चढ़ाकर दिखाने में सहायक बन जाती है। संपूर्ण मतदान के अनुपात में किसी दल को मिलने वाले कुल मतों द्वारा उस दल के जितने सदस्य न्यायत: चुने जाने चाहिए उससे कहीं अधिक चुन लिए जा सकते हैं। 1952 के [[भारत]] के प्रथम आम चुनाव में यही हुआ था।
कुछ राजनीतिक विचारकों एवं राजनेताओं ने यह सुझाव दिया है कि जिस दल की संमति से सरकार चलने वाली हो उसे कम से कम कुल मतदाताओं की बहुसंख्या का समर्थन तो प्राप्त होना ही चाहिए।<ref>{{cite web|url=https://www.thehindu.com/opinion/op-ed/what-is-first-past-the-post-system/article26502467.ece|title=What is First-past-the-post system?}}</ref> इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर निर्वाचन प्रणाली में कुछ सुधार सुझाये गए है। पुनरावर्तित गुप्त मतदान-प्रणाली इन सुधारों में से एक है। सबसे सरल तरीका वह है जिसका प्रयोग विधान सभाओं द्वारा किये जाने वाले चुनाव में उदाहरणार्थ, अमेरिका के दलीय सम्मेलन द्वारा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने वाले उम्मीदवारों के चुनाव में, किया जाता है। शलाका पद्धति द्वारा गुप्त मतदानों की शृंखला तब तक चलती रहती है जब तक कोई उम्मीदवार पड़े हुए समस्त मतों में से एकांतत: सर्वाधिक मत प्राप्त नहीं कर लेता।
'सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय की प्रणाली' प्राय: सदैव ही सबसे बड़े दलों के ही अनुकूल और दुर्बल एवं अल्पसंख्यक दलों के प्रतिकूल होती है। आनुयातिक प्रतिनिधित्व का सहारा लिए बिना ही इस प्रवृत्ति को दूर करने के लिए कुछ तरीके सुझाए गए हैं किंतु इन सारी प्रणालियों के प्रयोग के लिए बहुसदस्यीय निर्वाचक क्षेत्र अपेक्षित होते हैं।
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* [[मतदान]]
* [[मताधिकार]]
* [[भारतीय चुनाव]]
* [[नोटा (भारत)|नोटा]]
==सन्दर्भ==
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