"बप्पा रावल": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[https://www.allgkstudy.online/2020/09/bappa-rawal.html बप्पा रावल] मेवाड़ के संस्थापक थे कुछ जगहों पर इनका नाम कालाभोज है ( गुहिल वंश संस्थापक- ([[ राजा गुहादित्य ]])| इसी राजवंश में से सिसोदिया वंश का निकास माना जाता है, जिनमें आगे चल कर महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए।<ref>{{cite book |title=Yasovarman of Kanau |publisher=Abhinav Publications |url=https://books.google.co.in/books?id=kZWgj-YMdVEC&pg=PA48&dq=Bappa+Rawal+guhila&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjrhIj24J3cAhUMs48KHdlkAkoQ6AEIJjAA#v=onepage&q=Bappa%20Rawal%20guhila&f=false |accessdate=14 जुलाई 2018 |language=en |archive-url=https://web.archive.org/web/20180714080738/https://books.google.co.in/books?id=kZWgj-YMdVEC&pg=PA48&dq=Bappa+Rawal+guhila&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjrhIj24J3cAhUMs48KHdlkAkoQ6AEIJjAA#v=onepage&q=Bappa%20Rawal%20guhila&f=false |archive-date=14 जुलाई 2018 |url-status=live }}</ref> बप्पा रावल बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्तिवाचक शब्द नहीं है, अपितु जिस तरह "बापू" शब्द [[महात्मा गांधी]] के लिए रूढ़ हो चुका है, उसी तरह [[आदरसूचक]] "बापा" शब्द भी [[मेवाड़]] के एक नृपविशेष के लिए प्रयुक्त होता रहा है। सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का ही दूसरा नाम बापा मानने में कुछ ऐतिहासिक असंगति नहीं होती। इसके प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने इसे बापा पदवी से विभूषित किया था। [[महाराणा कुंभा]] के समय में रचित [[एकलिंग महात्म्य]] में किसी प्राचीन ग्रंथ या प्रशस्ति के आधार पर बापा का समय संवत् 810 (सन् 753) ई. दिया है। दूसरे एकलिंग माहात्म्य से सिद्ध है कि यह बापा के राज्यत्याग का समय था। बप्पा रावल को रावल की उपाधि भील सरदारों ने दी थी । जब बप्पा रावल 3 वर्ष के थे तब वे और उनकी माता जी असहाय महसूस कर रहे थे , तब भील समुदाय ने उनदोनों की मदद कर सुरक्षित रखा ,बप्पा रावल का बचपन भील जनजाति के बीच रहकर बिता , भील समुदाय ने अरबों के खिलाफ युद्ध में बप्पा रावल का सहयोग किया। यदि बापा का राज्यकाल 30 साल का रखा जाए तो वह सन् 723 के लगभग गद्दी पर बैठा होगा। उससे पहले भी उसके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में हो चुके थे, किंतु बापा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था। चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के राजाओं के हाथ में था। परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा ने मानमोरी को मारकर इस दुर्ग को हस्तगत किया। टॉड को यहीं राजा मानका वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक शिलालेख मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है।<ref>{{cite journal |last1=Sinha |first1=Nandini |title=A Study of State and Cult: The Guhilas, Pasupatas and Ekalingaji in Mewar, Seventh to Fifteenth Centuries A.D |journal=Studies in History |date=अगस्त 1993 |volume=9 |issue=2 |pages=161–182 |doi=10.1177/025764309300900201 |url=http://journals.sagepub.com/doi/10.1177/025764309300900201 |accessdate=14 जुलाई 2018 |language=en |issn=0257-6430 |archive-url=https://web.archive.org/web/20190329121702/https://journals.sagepub.com/doi/10.1177/025764309300900201 |archive-date=29 मार्च 2019 |url-status=live }}</ref>
 
[[चित्तौड़]] पर अधिकार करना कोई आसान काम न था। अनुमान है कि बापा की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई। सन् 712 ई. में [[मुहम्मद कासिम]] से [[सिंधु]] को जीता। उसके बाद अरबों ने चारों ओर धावे करने शुरु किए। उन्होंने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लों को हराया। [[मारवाड़]], [[मालवा]], [[मेवाड़]], [[गुजरात]] आदि सब भूभागों में उनकी सेनाएँ छा गईं। इस भयंकर कालाग्नि से बचाने के लिए ईश्वर ने राजस्थान को कुछ महान व्यक्ति दिए जिनमें विशेष रूप से [[गुर्जर]] प्रतिहार सम्राट् [[नागभट प्रथम]] और बापा रावल के नाम उल्लेखनीय हैं। नागभट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और मालवे से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया। मौर्य (मोरी) शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य किया जो मोरी करने में असमर्थ थे और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बापा रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक दंतकथाएँ अरबों की पराजय की इस सच्ची घटना से उत्पन्न हुई होंगी।<ref>{{cite book |last1=Ganguli |first1=Kalyan Kumar |title=Cultural History of Rajasthan |date=1983 |publisher=Sundeep |url=https://books.google.co.in/books?id=PXstAAAAMAAJ&q=founder+of+guhila+dynasty&dq=founder+of+guhila+dynasty&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwj63d2M453cAhWIsY8KHYxJCeoQ6AEIQjAG |accessdate=14 जुलाई 2018 |language=en |archive-url=https://web.archive.org/web/20180714110557/https://books.google.co.in/books?id=PXstAAAAMAAJ&q=founder+of+guhila+dynasty&dq=founder+of+guhila+dynasty&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwj63d2M453cAhWIsY8KHYxJCeoQ6AEIQjAG |archive-date=14 जुलाई 2018 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite book |last1=Asopa |first1=Jai Narayan |title=Origin of the Rajputs |date=1976 |publisher=Bharatiya Publishing House |url=https://books.google.co.in/books?id=BTxuAAAAMAAJ&q=founder+of+guhila+dynasty&dq=founder+of+guhila+dynasty&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwj63d2M453cAhWIsY8KHYxJCeoQ6AEIRjAH |language=en |access-date=14 जुलाई 2018 |archive-url=https://web.archive.org/web/20180714080801/https://books.google.co.in/books?id=BTxuAAAAMAAJ&q=founder+of+guhila+dynasty&dq=founder+of+guhila+dynasty&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwj63d2M453cAhWIsY8KHYxJCeoQ6AEIRjAH |archive-date=14 जुलाई 2018 |url-status=live }}</ref>
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* बप्पा रावल का देहान्त [[नागदा]] में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है।
* '''शिलालेखों में वर्णन''' -
:* [[कुम्भलगढ़ प्रशस्ति]] में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है
:* [[आबू]] के शिलालेख में बप्पा रावल का वर्णन मिलता है
:* [[कीर्ति स्तम्भ]] शिलालेख में भी बप्पा रावल का वर्णन मिलता है
:* रणकपुर प्रशस्ति में [https://www.allgkstudy.online/2020/09/bappa-rawal.html बप्पा रावल] व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। हालांकि आज के इतिहासकार इस बात को नहीं मानते |
:* कर्नल [[जेम्स टॉड]] को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी (जिसे बप्पा रावल ने पराजित किया) का वर्णन मिलता है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया।
 
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