"राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा": अवतरणों में अंतर

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'''राष्ट्रभाषा प्रचार समिति''', [[महाराष्ट्र]] के [[वर्धा]] में स्थित एक हिन्दी सेवी संस्था है जिसकी स्थापना सन् १९३६ ई. में हुई। इसके संस्थापकों में राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी|महात्मा गाँधी]], [[राजेन्द्र प्रसाद|डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद]], राजर्षि [[पुरुषोत्तम दास टंडन|पुरुषोत्तमदास टंडन]], पं॰ [[जवाहरलाल नेहरू]], श्री [[सुभाष चन्द्र बोस|सुभाषचन्द्र बोस]], [[नरेन्द्र देव|आचार्य नरेन्द्र देव]], आचार्य [[काका कालेलकर]], सेठ [[जमनालाल बजाज]], [[बाबा राघवदास]], श्री शंकरदेव, पं॰ [[माखनलाल चतुर्वेदी]], श्री हरिहर शर्मा, पं॰ [[वियोगी हरि]], श्री नाथसिंह, श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल, बृजलाल बियाणी एवं श्री नर्मदाप्रसाद सिंह प्रमुख थे।
 
समिति की भारत के विभिन्न प्रदेशों में २५ से अधिक राज्य इकाइयाँ हैं और भारत के बाहर बीस देशों में उसकी शाखाएँ हैं। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, के सुझाव के आधार पर ही १४ सितम्बर को [[हिन्दी दिवस]] के रूप में मनाया जाता है।
 
विश्वभर हिन्दी का प्रचार एवं प्रसार हो, इस लक्ष्य के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एक स्वंय -संचालित संस्था के रूप में प्रतिस्थापित हुई, जिसका नाम 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल' है। इस मंडल द्वारा दूररवर्त शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम को प्रस्तावित करता है।
 
== परिचय ==
[[राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा|राष्ट्रभाषा प्रचार समिति]] की स्थापना सन्‌ 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने एक स्वयं संचालित [[राष्ट्रभाषा]] संस्था के रूप में की थी। वर्तमान में इस बहुद्देशीय संस्था में 22 प्रांतीय समितियाँ (क्षेत्रीय केंद्र) 987 शिक्षा केंद्र (अध्ययन केंद्र) और 7629 परीक्षा केंद्र है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का मुख्‌यालयमुख्यालय [[वर्धा]] में स्थित है, जिसका प्रमुख उद्देश्य “एक दिव्य हो भारत जननी” के ध्येय के साथ संपूर्णसम्पूर्ण देशभरभारत में हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी में गुणवत्ता शिक्षा को प्रस्तावित कर समाज में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान करना है।
 
एक राष्ट्र और एक राष्ट्रभाषा का पवित्र संकल्प लेकर गाँधीजी ने इस समिति की प्राण प्रतिष्‍ठा की और उनकी परिकल्पनाओं को मूर्त रूप देने में [[राजेन्द्र प्रसाद|डॉ राजेन्द्र प्रसाद]], [[जवाहरलाल नेहरू]], नेताजी [[सुभाष चन्द्र बोस|सुभाषचन्द्र बोस]], [[वल्लभ भाई पटेल]], [[जमनालाल बजाज]], [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]], [[पुरुषोत्तम दास टंडन]], [[काका कालेलकर|काकासाहब कालेलकर]], [[माखनलाल चतुर्वेदी]], [[नरेन्द्र देव|आचार्य नरेन्द्र देव]] आदि महापुरुषों ने जो अथक परिश्रम किया, वह इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।
 
उस समिति का कार्यक्षेत्र प्रमुख रूप से [[गुजरात]], [[मुम्बई]], [[विदर्भ]], [[मराठवाडा]], [[मध्य प्रदेश|मध्यप्रदेश]], [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ]], [[झारखण्ड|झारखंड]], [[राजस्थान]], [[दिल्ली]], [[असम]], [[अरुणाचल प्रदेश|अरूणाचल प्रदेश]], [[नागालैण्ड]], [[मेघालय]], [[मिज़ोरम|मिजोरम]], [[मणिपुर]], [[त्रिपुरा]], [[सिक्किम]], [[बंगाल]], [[ओडिशा|उत्कल]], [[जम्मू और कश्मीर]], [[अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह|अन्दमान-निकोबार]], [[गोवा]], [[हरियाणा]] आदि प्रदेश।प्रदेश हैं, अर्थात दक्षिण के चार राज्यों के अलावा शेष भारत। उसी तरह विदेश में जैसे दक्षिण अफ्रीका, पूर्व अफ्रीका, अमेरिका, सुरीनाम, अरब, सुडान, इटली, मॉरिशस, जपान, म्यॉमा (बर्मा), नीदरलैण्ड, फीजी द्वीप, युनाइटेड किंग्डम, जर्मनी, थाईलैण्ड, बेहरीन, मस्कत, जावा, श्रीलंका आदि भी है।
 
विश्वभर हिन्दी का प्रचार एवं प्रसार हो इस लक्ष्य के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एक स्वंय संचालित संस्था के रूप में प्रतिस्थापित हुई, जिसका नाम 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल' है। इस मंडल द्वारा दूररवर्त शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम को प्रस्तावित करता है।
 
== संस्था के प्रमुख उद्देश्य ==
* संपूर्ण भारत में, आवश्यकतानुसार विदेश में [https://web.archive.org/web/20160303083531/http://rashtrabhasha.org.in/ राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार] - प्रसार करना और देशव्यापी व्यवहारों और कार्यों के लिए सुविधा प्रदान करना.करना। राष्ट्रभाषा की परीक्षाओं का संचालन.संचालन। पाठ्यपुस्तकें आदि का निर्माण व प्रकाशन.प्रकाशन। भावत्मक एकता के लिए भाषाई सहयोग द्वारा अनुकूल वातावरण तैयार कर भारतीय भाषाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करना.करना।
 
* [[भारत का संविधान|भारतीय संविधान]] की धारा ३४३ और ३५१ के अनुसार भारत गणराज्य द्वारा स्वीकृत राष्ट्रलिपि [[देवनागरी]] में लिखी जानेवाली राष्ट्रभाषा हिन्दी का संपूर्ण भारत में प्रचार प्रसार तथा विकास करना और देशव्यापी व्यवहार और कार्यों के लिए सुविधा प्रदान करना.करना।
 
* हिन्दी भाषा एवं साहित्य की अभिवृद्धि के लिए उपयोगी पुस्तकें लिखवाना, अनुवाद करना और उन्हें प्रकाशित करना.करना।
 
* राष्ट्रभाषा हिन्दी की शिक्षा का प्रबंध करना तथा परीक्षाएँ चलाना.चलाना।
 
* हिन्दी प्रचारकों, केन्द्र व्यवस्थापकों तथा हिन्दी प्रेमियों को राष्ट्रभाषा प्रचार की गतिविधियों की जानकारी देने के लिए मासिक पत्रिका का प्रकाशन करना.करना।
 
* भारतीय संविधान की धारा ३५१ के अनुसार भारत की सामासिक संस्कृति की वाहक राष्ट्रभाषा को संस्कृत तथा भारत की अन्य समृद्ध भाषाओं के सहयोग से इसकी शब्दसमृद्धि करते हुए भारत की राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के लिए प्राणवान भाषा बनाना.बनाना।
 
* हिन्दी [[साहित्य]] तथा ज्ञान विज्ञान की अभिवृद्धि के लिए उपयोगी मौलिक [[पुस्तकें]] लिखवाना तथा अन्य भारतीय भाषा के उत्कृष्ट साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करना तथा उसे प्रकाशित करना.करना।
 
* [[देवनागरी|देवनागरी लिपि]] का प्रचार करना और टंकण, कंप्यूटर तथा [[शीघ्रलिपि]] के प्रशिक्षण और प्रसार के लिए आवश्यक कार्य करना.करना।
 
== संस्था का कार्यक्षेत्र ==
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* देश के विभिन्न प्रदेशों के अलावा दक्षिण अफ्रीका, पूर्व अफ्रीका, श्रीलंका, बर्मा, मारीशस, फिजी, थाईलैण्ड, सूरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिनाड, इंग्लेण्ड, अमेरिका आदि देशा में विभिन्न परीक्षाओं का आयोजन किया गया।
 
* संस्था का एक विशाल पुस्तकालय है, जिसमें २० हजार से अधिक विविध विषयों की पुस्तकें उपलब्ध हैं।

* संस्था की स्वयं की प्रेस है।
 
* संस्था द्वारा '''हम चालीस''' अभियान का संचालन एवं राष्ट्रभाषा पत्रिका का प्रकाशन १९४२ से अब तक हो रहा है।
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== राष्ट्रभाषा प्रेस ==
समिति का सारा प्रकाशन, परीक्षा में लगनेवाली विभिन्न परिपत्रों की छपाई समिति के अपने प्रेस में होता है। इस प्रेस में सारा कार्य कंप्यूटर से संचालित होता है। चार रंगों की छपाई भी यहाँ होती हैऽअधुनिक मशीनों के कारण यह विदर्भ में कुछ इने गिने प्रेसों में गिना जाता है।
 
स्थापना के दिन से आज तक समिति की विभिन्न परीक्षाओं की पुस्तकें, सहायक पुस्तकें तथा अन्य हिन्दी से संबंधित पुस्तकें समिति द्वारा समय समय पर प्रकाशित की जाती है।
 
== प्रकाशन ==
 
स्थापना के दिन से आज तक समिति की विभिन्न परीक्षाओं की पुस्तकें, सहायक पुस्तकें तथा अन्य [[हिन्दी]] से संबंधित पुस्तकें समिति द्वारा समय समय पर प्रकाशित की जाती है।
 
'''===भारत भारती पुस्तक माला'''===
राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार संपूर्ण भारत में होना तो आवश्यक है ही, ताकि प्रत्येक भारतीय दूसरे प्रदेशों के निवासियों के साथ संपर्क स्थापित कर सकें तथा एक दूसरे के साथ सामान्य व्यवहार कर सकें.सकें। [[भाषा व्यवहार]] सरल होना भी आवश्यक है, अपितु हर प्रदेश के नागरिक दूसरे प्रदेश की भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त कर लें.लें। [[भारत की भाषाएँ|भारतीय भाषा]] में शब्द साम्य बहुत बड़ी मात्रा में है। इस लिए इन भाषाओं का सीखना उतना कठिन नहीं है, किंतु दूसरे प्रदेश की भाषा सीखने में [[लिपि]] की भिन्नता एक बड़ी बाधा है।
 
राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार संपूर्ण भारत में होना तो आवश्यक है ही, ताकि प्रत्येक भारतीय दूसरे प्रदेशों के निवासियों के साथ संपर्क स्थापित कर सकें तथा एक दूसरे के साथ सामान्य व्यवहार कर सकें. [[भाषा व्यवहार]] सरल होना भी आवश्यक है, अपितु हर प्रदेश के नागरिक दूसरे प्रदेश की भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त कर लें. [[भारत की भाषाएँ|भारतीय भाषा]] में शब्द साम्य बहुत बड़ी मात्रा में है। इस लिए इन भाषाओं का सीखना उतना कठिन नहीं है, किंतु दूसरे प्रदेश की भाषा सीखने में [[लिपि]] की भिन्नता एक बड़ी बाधा है।
 
समिति ने चाहा कि भारत का प्रत्येक व्यक्ति दूसरे प्रदेश की भाषाओं से परिचित हों. इसी उद्देश्य से समिति ने [[भारत भारती]] नामक तेरह भाषाओं की तेरह छोटी - छोटी पुस्तकें प्रकाशित की है। सभी भाषाओं को देवनागरी में प्रस्तुत किया गया है। इन पुस्तकों के द्वारा इन तेरह भाषाओं में से किसी भी भाषा का [[सामान्य ज्ञान]] आसानी से प्राप्त किया जा सकता है तथा सामान्य व्यवहार की कठिनाई दूर हो सकती है। इसि तरह [[कवि श्री माला]] भी विशेष उल्लेखनीय है।
 
== प्रकाशित= पत्रिका ===
'''राष्ट्रभाषा पत्रिका (मासिक):'''