"पंचकल्याणक": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 29:
# भगवान के गर्भ में आने से छह माह पूर्व से लेकर जन्म पर्यन्त 15 मास तक उनके जन्म स्थान में कुबेर द्वारा प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा होती है। यह भगवान के पूर्व अर्जित कर्मों का शुभ परिणाम है।
 
# दिक्ककुमारी देवियाँ माता की परिचर्या व गर्भशोधन करती हैं। यह भी पूण्यपुण्य योग है।
 
# गर्भ वाले दिन से पूर्व रात्रि को माता को 16 उत्तम स्वप्न दिखते हैं- जिन पर भगवान का अवतरण मानकर माता-पिता प्रसन्न होते हैं- इन स्वप्नों के बारे में विधानाचार्य आपको बताएँगे ही। इस कल्याणक को आपको इस प्रकार दिखाया जाएगा-
पंक्ति 35:
*सबसे पहले मंत्रोच्चार पूर्वक उस स्थान को जल से शुद्ध किया जाएगा। यह जल घटयात्रापूर्वक शुद्धि स्थल तक लाया जाएगा।
 
*शुद्धि के पश्चात उचित स्थल पर घटस्थापना होगी। उसके पश्चात जैन-ध्वज को लहराया जाएगा। जैन ध्वज - जैन दर्शन, ज्ञान और चरित्र की विजय पताका है। यह तीर्थंकरों की विजय पताका नहीं है- किसी राजा या राष्ट्र की विजय पताका नहीं है। यह चिन्तन-मनन, त्याग-तपस्या व अंतिम सत्य को पालने वाले मोक्षगामियों की विजय पताका है। इस भाव को ग्रहरग्रहण करना आवश्यक है। दिग्‌दिगंत में लहराने वाला यह ध्वज प्रतीक है उस संदेश का जो तीर्थंकरों- आचार्यों, मुनियों के चिंतन-मनन व आचरण से परिष्कृत है। ध्वजारोहण की एकमात्र आकांक्षा यही होती है कि प्राणिमात्र को अभय देने वाले जैन धर्म की स्वर लहरी तीनों लोकों में गूँजे। इस ध्वजा के फहराने का भी अधिकार उसे ही है जिसकी पूर्ण आस्था जैन जीवन शैली पर हो। जैन ध्वज के पाँच रंग होते हैं- क्रमशः सफेद, लाल, पीला,सफेद, हरा और नीला। पंडित नाथूलालजी शास्त्री के अनुसार इन रंगों को गृहस्थों के पंचाणुव्रत का सूचक भी माना गया है। इस ध्वजारोहण के साथ ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का शुभारंभ हो जाता है।
 
*पंच कल्याणक में गर्भ कल्याणक के साथ संस्कारों की चर्चा अत्यंत महत्वपूर्ण है। व्यक्ति के जीवन की संपूर्ण शुभ और अशुभवृत्ति उसके संस्कारों के अधीन है जिनमें से कुछ वह पूर्व भव से अपने साथ लाता है व कुछ इसी भव में संगति व शिक्षा आदि के प्रभाव से उत्पन्न करता है। इसीलिए गर्भ में आने के पूर्व से ही बालक में विशुद्ध संस्कार उत्पन्न करने के लिए विधान बताया गया है। गर्भावतरण से लेकर निर्वाण पर्यन्त यथा अवसर जिनेन्द्र पूजन व मंत्र विधान सहित 53 क्रियाओं का विधान है - जिनसे बालक के संस्कार उत्तरोत्तर विशुद्ध होते हुए एक दिन वह निर्वाण का भाजन हो जाता है- 'जिनेन्द्रवर्णी' पंचास्तिकाय, सिद्धिविनिश्चय, मूलाचार, धवला, महापुराण आदि ग्रंथों में संस्कारों पर बहुत कुछ लिखा गया है। पंचकल्याणक के शुभ संयोग से यदि संस्कारों के बारे में अधिक गहराई से विचार करेंगे तो उन्नत जीवन का हमारा नजरिया अधिक तार्किक हो जाएगा।
 
हमें दो बातों पर अवश्य ध्यान रखना होगा कि परिवार मे होने वाली माताओं को लेडी डॉक्टर जो निर्देश देती हैं, उसका मूल आधार इन्हीं संस्कारों में छिपा है। पूजा मंत्र आदि पर आधारित ग्रंथों का सृजन हुआ, उसका आधार भिन्न सामाजिक परिस्थितियाँ थीं किंतु भावों की निर्मलता गर्भावस्था से ही प्रारंभ होना चाहिए। मजे की बात है कि डॉक्टर की इस बात पर तो हम ध्यान दे रहे हैं पर आचार्यों की बात को पढ़ना भी नहीं चाहते।
भले ही अपनआप आचार्यों की बात को न माने, किंतु एक बार उनको पढ़ें तो सही। अब तो अधिसंख्य जैन समाज पढ़ा-लिखा है और ग्रंथ पढ़ सकता है। हिन्दी रूपांतर भी उपलब्ध हैं। संस्कार एक ऐसी प्रकाश की किरण है जो हमेशा आदमी के साथ रहती है। उसे अपने से जोड़े रखना नितांत आवश्यक है। संस्कार कोई बंधन नहीं है, यह मनोवैज्ञानिक इलाज है। एक हानिकारक बात ऐसी हुई कि वैदिक परंपराओं से जैन समाज का जब संपर्क आया तो वैदिक रूढ़िवादिता हमारे संस्कारों में भी घुस आई। आज समय आ गया है कि हम इसका स्क्रीनिंग करें व जो अच्छा हो, उसे अपना लें।
 
 
== जन्म कल्याणक ==