"चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर
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'''चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य''' (375-412) [[गुप्त राजवंश]] का राजा।
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चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने [[विक्रम संवत|विक्रम सम्वत्]] का प्रारम्भ किया। [[साँची अभिलेख]] में उसे 'देवराज' और 'प्रवरसेन' कहा गया है। विक्रमादित्य ने अपनी दूसरी राजधानी [[उज्जैन|उज्जयिनी]] को बनाया। चन्द्रगुप्त ने विदानो को संरक्षण दिया, उसके दरबार में नवरत्न निवास किया करते थे जिनमें [[कालिदास]], [[वराह मिहिर|वराहमिहिर]], [[धन्वन्तरि]] प्रमुख थे। उसने शक्तिशाली राजवंशों से वैवहिक सम्बम्ध स्थापित किए। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय ही [[चीन|चीनी]] बौद्ध यात्री [[फ़ाहियान|फाह्यान]] भारत आया था। उसके शासनकाल में कला, साहित्य, स्थापत्य का अभूतपूर्व विकास हुआ, इसलिए चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल को गुप्त साम्राज्य का स्वर्णयुग कहा जाता है।
== परिचय ==
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (
चंद्रगुप्त द्वितीय की तिथि का निर्धारण उनके अभिलेखों आदि के आधार पर किया जाता है। चंद्रगुप्त का, गुप्तसंवत् 61 (380 ई.) में उत्कीर्ण मथुरा स्तम्भलेख, उनके राज्य के पाँचवें वर्ष में लिखाया गया था। फलत: उनका राज्यारोहण गुप्तसंवत् 61 - 5= 56 (= 375 ई.) में हुआ। चंद्रगुप्त द्वितीय की अंतिम ज्ञात तिथि उनकी रजतमुद्राओं पर प्राप्त हाती है- गुप्तसंवत् 90 + 0 = 409 - 410 ई.। इससे अनुमान कर सकते हैं कि चंद्रगुप्त संभवत: उपरिलिखित वर्ष तक शासन कर रहे थे। इसके विपरीत [[कुमारगुप्त प्रथम]] की प्रथम ज्ञात तिथि गुप्तसंवत् 96= 415 ई., उनके बिलसँड़ अभिलेख से प्राप्त होती है। इस आधर पर, ऐसा अनुमान किया जाता है कि, चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का समापन 413-14 ई. में हुआ होगा।
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