"पंचकल्याणक": अवतरणों में अंतर

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*पहले लिखित रिकार्ड तो नहीं थे- जो पुरानी घटनाओं को याद रखने का सहारा बनते। पहले तो मनुष्य की विचार जनित वाणी और कुछ दृश्य दिखाना ही- घटनाओं को याद रखने का तरीका था। तीर्थंकर प्रकृति का बंध होने के बावजूद, तीर्थंकर की आत्मा को त्याग-तपस्या का मार्ग अपनाना ही पड़ता है। सांसारिक प्राणी के सामने इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराया जाए ताकि, जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों को वह सफलता से समझ जाए।
'जंबूदीवपण्णत्ति संग हो' अधिकार संख्या 13/गाथा सं. 93 में लिखा है- जिसका अर्थ इस प्रकार है- जो जिनदेव, गर्भावतार काल, जन्मकाल, निष्क्रमणकाल, केवल ज्ञानोत्पत्तिकाल और निर्वाण समय, इन पाँचों स्थानों (कालों) से पाँच महाकल्याण को प्राप्त होकर महाऋषिमहाऋधी युक्त सुरेन्द्र इंद्रों से पूजित हैं।
 
*पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नैमित्तिक महोत्सव है। यह आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है। पौराणिक पुरुषों के जीवन का संदेश घर-घर पहुँचाने के लिए इन महोत्सवों में पात्रों का अवलम्बन लेकर सक्षम जीवन यात्रा को रेखांकित किया जाता है। थोड़ा इसे विस्तार से समझने का प्रयत्न करते हैं।
 
*पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नैमित्तिक महोत्सव है। यह आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है। पौराणिक पुरुषों के जीवन का संदेश घर-घर पहुँचाने के लिए इन महोत्सवों में पात्रों का अवलम्बन लेकर सक्षम जीवन यात्रा को रेखांकित किया जाता है। थोड़ा इसे विस्तार से समझने का प्रयत्न करते हैं।
 
 
== गर्भ कल्याणक ==