"सूरी साम्राज्य": अवतरणों में अंतर

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== विवरण ==
सूर राजवंश का संस्थापक '''शेरशाह''' अफगानों की सूर जाति का था। यह 'रोह' (अफगानों का मूल स्थान) की एक छोटा और अभावग्रस्त जाति थी। शेरशाह का दादा इब्राहीम सूर १५४२१४४२ ई. में भारत आया और हिम्मतखाँ सूर तथा जमालखाँ की सेनाओं में सेवाएँ कीं। हसन सूर जो फ़रीद (बाद में शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ) का पिता था, जमाल खाँ की सेवा में ५०० सवार और सहसराम के इक्ता का पद प्राप्त करने में सफल हो गया। शेरशाह अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् उसके इक्ता का उत्तराधिकारी हुआ, और वह उस पर [[लोदी वंश|लोदी साम्राज्य]] के पतन (१५२६ ई.) तक बना रहा। इसके पश्चात् उसने धीरे-धीरे उन्नति की। दक्षिण [[बिहार]] में लोहानी शासन का अंत कर उसने अपनी शक्ति सदृढ़ कर ली। वह [[बंगाल]] जीतने में सफल हो गया और १५४० ई. में उसने मुगलों को भी भारत से खदेड़ दिया। उसके सत्तारुढ़ होने के साथ-साथ अफगान साम्राज्य चतुर्दिक फैला। उसने प्रथम अफगान (लोदी) साम्राज्य में बंगाल, मालवा, पश्चिमी राजपूताना, मुल्तान और उत्तरी सिंध जोड़कर उसका विस्तार दुगुने से भी अधिक कर दिया।
 
शेरशाह का दूसरा पुत्र जलाल खाँ उसका उत्ताराधिकारी हुआ। यह १५४५ ई. में इस्लामशाह की उपाधि के साथ शासनारूढ़ हुआ। इस्लामशाह ने ९ वर्षों (१५४५-१५५४ ई.) तक राज्य किया। उसे अपने शासनकाल में सदैव शेरशाह युगीन सामंतों के विद्रोहों को दबाने में व्यस्त रहना पड़ा। उसने राजकीय मामलों में अपने पिता की सारी नीतियों का पालन किया तथा आवश्यकतानुसार संशोधन और सुधार के कार्य भी किए। इस्लामशाह का अल्पवयस्क पुत्र फीरोज उसका उत्ताराधिकारी हुआ, किंतु मुबारिज खाँ ने, जो शेरशाह के छोटे भाई निजाम खाँ का बेटा था, उसकी हत्या कर दी।