"मेघनाद": अवतरणों में अंतर
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संजीव कुमार (वार्ता | योगदान) छो -अतिमहारथी टैग: 2017 स्रोत संपादन |
→दूसरा दिन: मेघनाथ को एक युक्ति सूजी बेहद रस होकर माया युद्ध करने लगा जिसमें उसने लक्ष्मण पर शक्ति अस्त्र का प्रयोग किया और वह मूर्छित हो गए और बाना सेना पर ब्रह्मशिरा अस्त्र का प्रयोग किया टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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जब रावण को यह पता चला की सभी [[वानर]] सैनिक, भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी नागपाश से मुक्त हो गए हैं तो क्रोध में आकर उसने दूसरे दिन एक बार फिर इंद्रजीत को आदेश दिया कि वह एक बार फिर युद्ध-भूमि की ओर कूच करे ।
एक बार फिर अपने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करके माता निकुंभला का आशीर्वाद लेकर इंद्रजीत रणभूमि की ओर निकल पड़ा । इस बार उसने रणभूमि में घोषणा कि आज वह एक भी वानर सैनिक को जीवित नहीं छोड़ेगा और कम से कम दोनों भाइयों में से (अर्थात राम जी और लक्ष्मण जी में से) किसी एक को तो मार ही देगा । इसी उद्घोषणा के साथ वह पहले दिन से भी कहीं अधिक भयंकरता के साथ युद्ध करने लगा । उसकी इस ललकार को सुनकर लक्ष्मण जी भगवान श्रीराम की आज्ञा लेकर उसका सामना करने चल पड़े । दोनों के बीच भयंकर द्वंद छिड़ गया, परंतु दोनों ही टस से मस होने के लिए तैयार नहीं थे
माया युद्ध में
श्रीब्रह्मा जी का वरदान होने के कारण कुछ नहीं हुआ और वे तुरंत ही सारे वानर सैनिकों और लक्ष्मण जी को बचाने निकल पड़े । इधर दूसरी ओर मेघनाद घायल लक्ष्मण जी उठाने का प्रयत्न करने लगा, परंतु उन्हें हिला भी नहीं सका । इस पर हनुमान जी ने यह कहा कि '''वह उन्हें उठाने का प्रयत्न कर रहा है जो साक्षात भगवान [[शेषनाग]] अनन्त के अवतार हैं, उस जैसे पापी से नहीं उठेंगे'''। इतना कहकर उन्होंने मेघनाद पर प्रहार किया और लक्ष्मण जी को बचा कर ले आए । उसके बाद [[सुषेण वैद्य]] के कहने पर हनुमान जी [[संजीवनी|संजीवनी बूटी]] ले आए जिससे लक्ष्मण जी का उपचार हुआ और वे बच गए ।
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