"तारा (रामायण)": अवतरणों में अंतर

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== जन्म ==
कुछ ग्रन्थों के अनुसार वह [[देवता|देवताओं]] के [[गुरु]] [[बृहस्पति]] की पौत्री थी।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga15/kishkindha_15_prose.htm| title = तारा| accessdate = 1 मई 2012| archive-url = https://web.archive.org/web/20090921120630/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga15/kishkindha_15_prose.htm| archive-date = 21 सितंबर 2009| url-status = live}}</ref> एक कथा के अनुसार [[समुद्र मन्थन]] के दौरान चौदह मणियों में से एक अप्सराएँ थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी।<ref name="Bhattacharya">{{cite journal|last=Bhattacharya|first=Pradip|date=मार्च–Apr 2004|title=Five Holy Virgins, Five Sacred Myths: A Quest for Meaning (Part I)|journal=Manushi|issue=141|pages=7–8|url=http://www.manushi-india.org/pdfs_issues/PDF%20141/03%20panchakanya%204-12.pdf|access-date=1 मई 2012|archive-url=https://web.archive.org/web/20120313141258/http://www.manushi-india.org/pdfs_issues/PDF%20141/03%20panchakanya%204-12.pdf|archive-date=13 मार्च 2012|url-status=dead}}</ref> वालि और सुषेण दोनों मन्थन में देवतागण की मदद कर रहे थे। जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी। वालि तारा के दाहिनी तरफ़ तथा सुषेण उसके बायीं तरफ़ खड़े हो गए। तब विष्णु ने फ़ैसला सुनाया कि विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ़ उसका होने वाला पति तथा बायीं तरफ़ कन्यादान करने वाला पिता होता है। अतः वालि तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किये गए।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga22/kishkindha_22_prose.htm| title = तारा का विवाह| accessdate = 1 मई 2012| archive-url = https://web.archive.org/web/20101106012835/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga22/kishkindha_22_prose.htm| archive-date = 6 नवंबर 2010| url-status = livedead}}</ref>
 
== वालि का वध ==
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=== तारा का विलाप ===
[[चित्र:Vali dying.jpg|thumb|left|350px|तारा (दाहिने) की गोद में मरणासन्न वालि, चित्र के बीच में हनुमान]]
ऐसी मान्यता है कि राम ने वालि पर जो तीर चलाया था वह एक साधारण तीर था, अर्थात् राम के तरकश में अनेकानेक अस्त्र थे जिनसे पल भर में जीव तो क्या पूरी की पूरी सभ्यता का विनाश हो सकता था, जैसे ब्रह्मास्त्र इत्यादि। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम — जो कि विष्णु का अवतार थे और सर्वज्ञाता थे — ने एक साधारण सा ही तीर इसलिए चलाया क्योंकि वालि की तुरन्त मृत्यु न हो और मरने से पहले उसे अपने प्रश्नों का उत्तर भली भांति प्राप्त हो जाये ताकि वह शांति से प्राण त्याग सके और मरने से पहले वह स्वजनों से भली भांति मिल सके। वालि के आहत होने का समाचार सुनकर तारा अपने पुत्र [[अंगद]] के साथ रणभूमि की तरफ़ भागी। रास्ते में उसे रण से भागते हुए वानर मिले जिन्होंने उसे सलाह दी कि अंगद को लेकर वापस किष्किन्धा जाकर अंगद का राज्याभिषेक कर दे और राम के प्रकोप से बच जाये। लेकिन तारा ने उस वानर समूह को अपने साथ किया और मरणासन्न वालि की ओर प्रस्थान किया। वहाँ जा कर वालि के समक्ष तारा का विलाप अति महत्वपूर्ण है क्योंकि मनुष्य के अलावा कोई और प्राणी अपने स्वजन के मरने पर इतना विलाप नहीं करता है। पहले तो तारा मरते हुए वालि को अंग लगाती है, उसके पश्चात् सुग्रीव तथा राम को वह खरी खोटी सुनाती है। हनुमान मध्यस्थता करते हुए तारा को ढाढ़स बन्धाते हैं और उसे दर्शन शास्त्र समझाते हैं।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga21/kishkindha_21_prose.htm| title = तारा का विलाप| accessdate = 2 मई 2012| archive-url = https://web.archive.org/web/20101107062843/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga21/kishkindha_21_prose.htm| archive-date = 7 नवंबर 2010| url-status = livedead}}</ref> यह एक अनूठा संदर्भ है कि तारा ने वालि की चिता में अपने भी प्राण त्यागने का संकल्प लिया था। तारा को राजनीति तथा कूटनीति का अच्छा ज्ञान था और इसी वजह से वानरों के कहने के बावजूद उसने अंगद का राज्याभिषेक न करा कर सुग्रीव को ही राजा मनोनित किया। अपने पुत्र पर कोई आँच न आने पाये, इस कारण उसने सुग्रीव को अपना स्वामी स्वीकार कर लिया।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga23/kishkindha_23_prose.htm| title = तारा की बुद्धिमता| accessdate = 2 मई 2012| archive-url = https://web.archive.org/web/20110822075750/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga23/kishkindha_23_prose.htm| archive-date = 22 अगस्त 2011| url-status = livedead}}</ref>
 
== लक्ष्मण को शांत करना ==
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== तारा एक नारी ==
रामायण के कई रूपांतरणों में यह उल्लेख आया है कि जब [[मायावी]] से युद्ध करते समय वालि को काफ़ी समय बीत गया और सुग्रीव ने कन्दरा के मुहाने में एक शिला लगाकर उसका द्वार बन्द कर दिया और किष्किन्धा वापस आकर इस बात की सूचना मंत्रियों को दी कि शायद वालि मायावी के हाथों मारा गया है, तो मंत्रणा करके मंत्रियों ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा चुना और प्रकट रूप से विधवा हुई तारा अपने पति के छोटे भाई की पत्नी स्वीकृत हुई। इस प्रथा को न तो वाल्मीकि रामायण में और न ही उसके क्षेत्रीय रूपांतरणों में पाप का दर्जा दिया गया है। लेकिन जब वालि मायावी का वध करके वापस किष्किन्धा आता है और क्रोध के कारण सुग्रीव को देश-निकाला देता है और उसकी पत्नी रूमा को हड़प लेता है तो [[किष्किन्धाकाण्ड]] में सुग्रीव-राम मिलाप के दौरान राम इसे घोर पाप की संज्ञा देते हैं।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga5/kishkindha_5_prose.htm| title = सुग्रीव-राम मिलाप| accessdate = 2 मई 2012| archive-url = https://web.archive.org/web/20120321161624/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga5/kishkindha_5_prose.htm| archive-date = 21 मार्च 2012| url-status = livedead}}</ref> वालि के वध के बाद भी तारा पुनः सुग्रीव की पत्नी बन गई। शायद उस काल के समाज में बहु-पत्नी तथा बहु-पति ([[द्रौपदी]]) प्रथा का चलन स्वीकार्य रहा हो।
 
== सन्दर्भ ==