"अरस्तु का विरेचन सिद्धांत": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
|||
पंक्ति 3:
विरेचन सिद्धांत द्वारा अरस्तु ने प्रतिपादित किया कि कला और साहित्य के द्वारा हमारे दूषित मनोविकारों का उचित रूप से विरेचन हो जाता है। सफल त्रासदी विरेचन द्वारा [[करुणा]] और [[त्रास]] के भावों को उद्बुद करती है उनका सामंजन करती है और इस प्रकार आनंद की भूमिका प्रस्तुत करती है। विरेचन से भावात्मक विश्रांति ही नहीं होती भावात्मक परिष्कार भी होता है। इस तरह अरस्तु ने कला और काव्य को प्रशंसनीय, ग्राह्य और सायास रक्षनीय सिद्ध किया है।
श्रेणी- [[पाश्चात्य काव्यशास्त्र]]
|