"महावीर स्वामी": अवतरणों में अंतर

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{{जैन धर्म}}
भगवान '''महावीर स्वामी''' [[जैन धर्म]] के चौंबीसवें (२४वें) [[तीर्थंकर]] है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), [[वैशाली]] के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें [[केवलज्ञान]] प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने [[समवशरण]] में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें [[पावापुरी]] से [[मोक्ष (जैन धर्म)|मोक्ष]] की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा [[बिम्बिसार]], [[कुनिक]] और [[चेटक]] भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को [[महावीर-जयंती जन्म कल्याणक]] तथा उनके मोक्ष दिवस को [[दीपावली]] के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।[[File:Mahavir.jpg|350px|thumb|right||भगवान महावीर की प्रतिमा (महावीरजी, करौली, राजस्थान)]]
जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान [[अवसर्पिणी]] काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और [[ऋषभदेव]] पहले।{{sfn|प्रमाणसागर|२००८|प=१७}} हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया।{{sfn|Jain|Jain|2002|p=13}} उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– [[अहिंसा]], [[सत्य]], [[अपरिग्रह]], अचौर्य ([[अस्तेय]]) और [[ब्रह्मचर्य]]। उन्होंने [[अनेकांतवाद|अनेकांतवाद,]] [[स्यादवाद]] और [[अपरिग्रह]] जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए। महावीर स्वामी के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर स्वामी का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है।
 
== जीवन ==