"जॉन बार्थविक गिलक्राइस्ट": अवतरणों में अंतर

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[ “…अंग्रेजों के शासनकाल में बहुत से विदेशियों ने श्रम एवं निष्ठापूर्वक हिन्दी सीखी तथा हिन्दी सीखकर हिन्दी की पाठ्य पुस्तकों, हिन्दी के व्याकरणों एवं कोशों का निर्माण किया। उनके अध्ययन आज के भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण एवं पद्धति के अनुरूप भले ही न हों किन्तु हिन्दी भाषा के वाड्.मीमांसापरक अध्ययन की दृष्टि से उनका ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है " -- प्रोफेसर महावीर सरन जैन]
 
जॉन बार्थविक गिलक्राइस्ट ः (1759-1841)
 
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‘‘ श्रीयुत गुनगाहक गुनियन-सुखदायक जान गिलकिरिस्त महाशय की आज्ञा से सम्वत् 1860 (अर्थात् सन् 1803 ई0) में श्री लल्लू जी लाल कवि ब्राह्मन गुजराती सहस्र अवदीच आगरे वाले ने जिसका सार ले, यामिनी भाषा छोड़, दिल्ली आगरे की खड़ी बोली में कह, नाम ‘प्रेमसागर' धरा''।(14)
 
[[श्रेणी: हिन्दी के विदेशी विद्वान]]
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[[श्रेणी:हिन्दी व्याकरण]]
 
विशेष अध्ययन के लिए देखें:
 
विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी वाड्.मीमांसापरक अध्ययन (फिलॉलाजिकल स्टडीज) (सन् 1940 ई0 तक) - प्रोफेसर महावीर सरन जैन
 
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