"विक्रम संवत": अवतरणों में अंतर
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'''विक्रम संवत्''' या '''विक्रमी''' [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में प्रचलित [[हिन्दू
इस संवत् का आरम्भ [[गुजरात]] में [[कार्तिक]] शुक्ल [[प्रतिपदा]] से और उत्तरी भारत में [[चैत्र]] शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब [[सूर्य]] व [[चन्द्रमा|चंद्रमा]] की गति पर रखा जाता है। यह बारह [[राशियाँ]] बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस [[राशियाँ|राशि]] में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। [[पूर्णिमा]] के दिन, चंद्रमा जिस [[नक्षत्र]] में होता है, उसी आधार पर [[मास|महीनों]] का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घटी ४८ पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक ३ वर्ष में इसमें १ महीना जोड़ दिया जाता है ([[अधिक मास|अधिमास]], देखें)।
जिस दिन नव संवत् का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है। उदाहरण के लिए, १८-मार्च-२०१८ को विक्रम संवत् २०७५ का प्रथम दिन था। १८ मार्च को रविवार होने से वर्ष का राजा [[सूर्य]] होगा।
आरम्भिक [[अभिलेख|शिलालेखों]] में ये वर्ष 'कृत' के नाम से आये हैं। ८वीं एवं ९वीं शती से विक्रम संवत् का नाम विशिष्ट रूप से मिलता है। [[संस्कृत]] के ज्योतिष ग्रंथों में [[शक संवत्]] से भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए सामान्यतः केवल 'संवत्' नाम का प्रयोग किया गया है ('विक्रमी संवत्' नहीं)।
==उद्भव==
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'विक्रम संवत' के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि '[[विक्रमादित्य]]' नामक किसी राजा ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। कुछ लोग ईसवी सन ७८ और कुछ लोग ईसवी सन ५४४ में इसका प्रारम्भ मानते हैं।
फ़ारसी ग्रंथ 'कलितौ दिमनः' में [[पञ्चतन्त्र|पंचतंत्र]] का एक पद्य 'शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्' का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः 'कृत संवत' को 'विक्रम संवत' का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु 'कृत' शब्द के प्रयोग की सन्तोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में [[मावल-गण]] का संवत उल्लिखित है, जैसे- [[
=== महीनों के नाम ===
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