"विक्रम संवत": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Barnala inscription 2.jpg|right|thumb|250px200px|बरनाला का स्तम्भ जिस पर अंकित लेख स्पष्ट दिख रहा है।]]
'''विक्रम संवत्''' या '''विक्रमी''' [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में प्रचलित [[हिन्दू पञ्चाङ्ग]] है। यह [[नेपाल]] का और भारत में कई जगहों का सांस्कृतिक एवम् आधिकारिक पञ्चांग है। [[भारत]] में यह अनेकों राज्यों में प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग है। नेपाल के सरकारी संवत् के रुप मे विक्रम संवत् ही चला आ रहा है। इसमें चान्द्र मास एवं [[नाक्षत्र वर्ष|सौर नाक्षत्र वर्ष]] (solar sidereal years) का उपयोग किया जाता है। प्रायः माना जाता है कि विक्रमी संवत् का आरम्भ ५७ ई.पू. में हुआ था। (विक्रमी संवत् = ईस्वी सन् + ५७) ।
 
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==उद्भव==
[[चित्र:Barnala inscription.jpg|right|thumb|200px|बरनाला स्तम्भलेख के विषय में दी गयी आधिकारिक जानकारी]]
[[Image:Westindischer Maler um 1400 001.jpg|right|thumb|300px|'कलकाचार्य कथा' नामक [[पाण्डुलिपि]] में वर्णित [[जैन धर्म|जैन]] भिक्षु कलकाचार्य और राजा शक राजा ([[छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय]], [[मुम्बई]])]]
'विक्रम संवत' के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि '[[विक्रमादित्य]]' नामक किसी राजा ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। कुछ लोग ईसवी सन ७८ और कुछ लोग ईसवी सन ५४४ में इसका प्रारम्भ मानते हैं।
 
[[फ़ारसी]] ग्रंथ 'कलितौ दिमनः' में [[पञ्चतन्त्र|पंचतंत्र]] का एक पद्य 'शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्' का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः 'कृत संवत' को 'विक्रम संवत' का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु 'कृत' शब्द के प्रयोग की सन्तोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में [[मावल-गण]] का संवत उल्लिखित है, जैसे- [[नरवर्मन|नरवर्मा]] का [[मन्दसौर शिलालेख]]। 'कृत' एवं 'मालव' संवत एक ही कहे गए हैं, क्योंकि दोनों पूर्वी [[राजस्थान]] एवं पश्चिमी [[मालवा]] में प्रयोग में लाये गये हैं। कृत के २८२ एवं २९५ वर्ष तो मिलते हैं, किन्तु मालव संवत के इतने प्राचीन शिलालेख नहीं मिलते। यह भी सम्भव है कि कृत नाम पुराना है और जब मालवों ने उसे अपना लिया तो वह 'मालव-गणाम्नात' या 'मालव-गण-स्थिति' के नाम से पुकारा जाने लगा। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यदि 'कृत' एवं 'मालव' दोनों बाद में आने वाले विक्रम संवत की ओर ही संकेत करते हैं, तो दोनों एक साथ ही लगभग एक सौ वर्षों तक प्रयोग में आते रहे, क्योंकि हमें ४८० कृत वर्ष एवं ४६१ मालव वर्ष प्राप्त होते हैं।
 
=== महीनों के नाम ===