"चरखा": अवतरणों में अंतर
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चरखे के आकार पर उपयोगिता की दृष्टि से बराबर प्रयोग होते रहे। खड़े चरखे का किसान चरखे की शकल में सुधार हुआ। गांधी जी स्वयं कताई करते थे। यरवदा जेल में किसान चरखे को पेटी चरखे का रूप देने का श्रेय उन्हीं को है। श्री सतीशचंद्र दासगुप्त ने खड़े चरखे के ही ढंग का बाँस का चरखा बनाया, जो बहुत ही कारगर साबित हुआ। बाँस का ही जनताचक्र (किसान चरखे की ही भाँति) बनाया गया, जिस पर श्री वीरेन्द्र मजूमदार लगातार बरसों कातते रहे। बच्चों के लिये या प्रवास में कातने के लिये प्रवास चक्र भी बनाया गया, जिसकी गति किसान चक्र से तो कम थी, लेकिन यह ले जाने लाने में सुविधाजनक था। इस प्रकार अब तक बने हुए चरखों में गति और सूत की मज़बूती की दृष्टि से किसान चरखा सबसे अच्छा रहा। फिर भी देहात की कत्तिनों में खड़ा चरखा ही अधिक प्रिय बना रहा। गांधी जी के स्वर्गवास के बाद भी चरखे के संशोधन और प्रयोग का काम बराबर चलता रहा।
[[File:Man using a hand loom in Pakistan.jpg|thumb|हैंड लूम का उपयोग अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में धागा और कपड़ा बुनने के लिए किया जाता है]]
== इन्हें भी देखें ==
* [[राष्ट्रीय चरखा संग्रहालय]]
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