"डिंगल": अवतरणों में अंतर

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राव कवियों ने भी डिंगळ में साहित्य रचना की है
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[[राजस्थान]] के चारण कवियों ने अपने गीतों के लिये जिस साहित्यिक शैली का प्रयोग किया है, उसे '''डिंगल'' कहा जाता है। वैसे चारण कवियों के अतिरिक्त ब्राह्मण, जैन, भाटराव व राजपूत कवियों जैसे प्रिथीराज राठोड़ ने भी डिंगल शैली में रचना की है। । कुछ विद्वान् "डिंगल" और "राजस्थानी" को एक दूसरे का पर्यायवाची मानते हैं। वस्तुत: "डिंगल" के सर्वप्रथम चारण रहें हैं। इस साहित्यिक शैली में पर्याप्त रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनमें अनेक दोहे तथा वीर रस के गीत हैं। "डिंगल" के प्रमुख कवियों में प्रिथीराज, ईसरदास जी, दुरसा जी आढा, ठा. नाथूसिंह महियारिया, करणीदान कविया, बाँकीदास आशिया, किशन जी आढा, मिश्रण कवि सूर्यमल्ल और महाराजा चतुरसिंह जी हैं। अंतिम कवि की रचनाएँ वस्तुत: डिंगल शैली के साथ कश्म मेवाड़ी बोली में है।
 
यह बहुत उच्च स्वर की भाषा है और इसे बोलने की एक विशिष्ट शैली की आवश्यकता होती है। इसे मुख्य रूप से चारणों द्वारा राजपूत और चारण युद्ध नायकों के जंगी कारनामों की प्रशंसा करके सैनिकों को प्रेरित करने के लिए किया जाता था। कई राजपूत राजाओं ने भी डिंगल में कविताएं लिखीं, विशेष रूप से मारवाड़ के महाराजा मान सिंह राठौर (1803-1843 शासनकाल) ।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/डिंगल" से प्राप्त