"कर्मभूमि": अवतरणों में अंतर

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प्रेमचन्द की रचना कौशल इस तथ्य में है कि उन्होंने इन समस्याओं का चित्रण सत्यानुभूति से प्रेरित होकर किया है कि उपन्यास पढ़ते समय तत्कालीन राष्ट्रीय सत्याग्रह आन्दोलन पाठक की आँखों के समक्ष सजीव हो जाता हैं। छात्रों तथा घटनाओं की बहुलता के बावजूद उपन्यास न कहीं बोझिल होता है न कहीं नीरस। प्रेमचन्द हर पात्र और घटना की डोर अपने हाथ में रखते हैं इसलिए कहीं शिथिलता नहीं आने देते। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद से ओतप्रोत कर्मभूमि उपन्यास प्रेमचन्द की एक प्रौढ़ रचना है जो हर तरह से प्रभावशाली बन पड़ी है।
 
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*[https://web.archive.org/web/20140911134350/http://www.gadyakosh.org/gk/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF_/_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6#.VA54UqMlhmM '''कर्मभूमि'''] (गद्यकोश)
*[https://web.archive.org/web/20140926030546/http://hindisamay.com/premchand%20samagra/karmbhoomi/karmbhoomi.htm कर्मभूमि] (हिन्दी समय)