"साँचा:गांधी के सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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===अहिंसा===
 
हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने <ref><marquee>
{{cite book | last =Asirvatham | first =Eddy | title =Political Theory | publisher =S.chand| year = | isbn=8121903467 }}</marquee>
</ref> पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। [[अहिंसा|अहिंसा]] ([[:en:non-violence|non-violence]]), ''[[अहिंसा|अहिंसा]] ([[:en:ahimsa|ahimsa]])'' और अप्रतिकार ([[:en:non-resistance|non-resistance]])का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा ''द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " ([[:en:The Story of My Experiments with Truth|The Story of My Experiments with Truth]])''में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था :
 
<blockquote>''जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें।'' </blockquote>
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इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी अहिंसात्मक बन गईं थीं।" फॉर पसिफिस्ट्स."<ref>भारतन कुमारप्पा,‍ संपादक ''फॉर पसिफिस्ट्स'' एम;के; द्वारा लिखित।गांधी , नवजीवन प्रकाशन हाउस, [[अहमदाबाद]] , [[भारत]] , १९४९ .</ref> नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं।
 
<blockquote>विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है।प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा; संपूर्ण [[अहिंसा]] के आधार पर संगठित और चलने वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता</blockquote> वाला समाज होगा।
 
<blockquote>मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्‍वास रखने वालों से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार [[साम्प्रदायिक]] अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;</blockquote>।