"प्रसूति विज्ञान": अवतरणों में अंतर
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80 में एक, त्रिक बच्चे और 6,400 में एक तथ चतुष्क और पंचक बच्चे और भी कम अनुपात से होते हैं। प्रसवकाल में विलंब या तो गर्भिणी के कूल्हे की हड्डियों और बच्चे के अंगों का अनुपात ठीक न होने से, अथवा गर्भाशय की क्रिया के मंद हो जाने से, होता है। इसे कष्टप्रसव (dystokia) कहते हैं। जच्चा के कूल्हे की हड्डियों का आकार एक्स किरणों की सहायता द्वारा प्रसव के पूर्व ज्ञात किया जा सकता है। आवश्यकतानुसार सशल्य गर्भ-निकासन (Caesarian section), या संदंशिका (forceps) शल्य चिकित्सा द्वारा शिशु का जन्म कराया जा सकता है। शल्य चिकित्सा के समय होनेवाले खतरों को रक्त देकर (blood transfusion) तथा प्रतिजैविक ओषधियों की सुई देकर कम कर दिया जाता है। प्रसव के प्रथम चरण में गर्भाशय की शिथिलता के लिए शामक (sedatives) ओषधियों की मदद ली जाती है तथा दूसरे चरण में बच्चे को निकालने के लिए संदंशिका की मदद लेते हैं। रक्तस्राव, चाहे यह प्रसव के पूर्व हो चाहे बाद में गर्भाशय में गर्भनाल के अलग हो जाने से होता है तथा यह जच्चा और बच्चा दोनों के लिए प्राणघातक भी हो सकता हैं। प्रसव के तीसरे और चौथे चरण में भारी रक्तस्राव की, जो जच्चा के लिए हानिकारक होता है, संभावना रहती है।
== प्रसूतिकाल ==
प्रसव के चतुर्थ चरण से प्रारंभ होकर जच्चा की जननेंद्रिय के गर्भकाल से पूर्व की अवस्था प्राप्त होने तक का समय प्रसूतिकाल है। साधारणत: यह छ: से लेकर आठ सप्ताह तक का होता है। गर्भाशय इस अवधि में दो पाउंड से घटकर दो औंस का हो जाता है। इस काल में गर्भाशय की रुधिर वाहिकाएँ भी नवीन रूप प्राप्त कर लेती हैं। साधारणत: मासिक धर्म भी दो से तीन मास तक नहीं होता। कभी कभी शिशु को स्तन-दुग्ध पान कराते रहने तक भी मासिक धर्म नहीं होता।
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