"गुरु तेग़ बहादुर": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) छो Bhawandeep Singh Sond (Talk) के संपादनों को हटाकर संजीव कुमार के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 1:
{{सिक्खी}}
'''गुरू तेग़ बहादुर''' (1 अप्रैल 1621 – 11 नवम्बर, 1675) [[सिख|सिखों]] के नवें [[गुरु]] थे जिन्होने प्रथम [[गुरु नानक]] द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण
{| class="toccolours" style="float: right; margin-left: 1em; margin-right: 2em; font-size: 85%; background:#c6dbf7; color:black; width:40em; max-width: 50%;" cellspacing="5"
| style="text-align: left;" | "धरम हेत साका जिनि कीआ<br />सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
पंक्ति 8:
[[चित्र:Gurus1700s.jpg|अंगूठाकार]]
[[चित्र:Interior-view-Gurudwara-Sis-Ganj-Sahib.jpg|अंगूठाकार|गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के अन्दर का दृष्य]]
इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए
आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।
11 नवंबर, 1675 ई को [[दिल्ली]] के [[चांदनी चौक]] में काज़ी ने [[फ़तवा]] पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार
: ''तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
|