"चंगेज़ ख़ान": अवतरणों में अंतर

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यद्यपि अपने अभियानों की क्रूरता के लिए चंगेज़ खान को जाना जाता है और कई लोगों द्वारा एक नरसंहार शासक होने के लिए माना जाता है परंतु चंगेज खान को सिल्क रोड को एक एकत्रीय राजनीतिक वातावरण के रूप में लाने का श्रेय दिया जाता रहा है। यह [[रेशम मार्ग]] पूर्वोत्तर एशिया से मुस्लिम दक्षिण पश्चिम एशिया और ईसाई यूरोप में संचार और व्यापार लायी, इस तरह सभी तीन सांस्कृतिक क्षेत्रों के क्षितिज का विस्तार हुआ।
 
वर्ष 2003 में एक जेनेटिक अध्ययन में सामने आया था कि पूरे यूरेशियाए लोगों के एक विशेष वर्ग में एक साझा डीएनए पैटर्न है। इस अध्ययन के अनुसार यूरेशिया के 16 समूहों के 8 प्रतिशत लोगों में यह पैटर्न पाया जाता है जिसका अर्थ है कि यूरेशिया में लगभग 1 करोड़ 60 लाख लोग एक ही डीएनए पैटर्न के हैं जिसका सीधा-सा अर्थ है कि वे किसी एक ही गोत्र का हिस्सा हैं। अध्ययन करने वाले इसकी और गहराई में गए तो पता चला कि यह पैटर्न मंगोलिया के चंगेज खान के डीएनए पैटर्न से मिलता है। इसका अर्थ है कि एक समय चंगेज खां का इतना व्यापक प्रभाव रहा होगा कि वह पूरे यूरेशिया में लोगों के डीएनए पैटर्न को बदलने में सक्षम था।
 
पाश्चात्य विज्ञानियों का मानना है कि चंगेज जहां जाता होगा वहां वह केवल स्त्रियों के साथ संबंध बनाता फिरता रहा होगा, क्योंकि डीएनए संरचना जन्मजात होती है और उसमें बाद में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया जा सकता। दूसरी बात यह है कि यूरोप और मध्य-पूर्व में विशेषकर ईसाई और मुस्लिम पंथ के क्रूसेडर और जिहादी युद्ध में स्त्रियों को कब्जाने और उन्हें दासी बनाकर अपने मनोरंजन के प्रयोग करने का काम करते रहे हैं। इसलिए उन्होंने यही बात चंगेज के लिए भी सोच ली कि वह भी ऐसा ही करता रहा होगा। इसलिए यूरेशिया के हर 200 पुरुषों में से 1 पुरुष का डीएनए पैटर्न चंगेज खान से मिलता है।
 
परंतु चंगेज खान के जीवन का अध्ययन करने से यह बात साबित होती है कि वह ऐसा कोई यौनकुंठित शासक नहीं था। चंगेज के जीवन में अन्य स्त्रियां होतीं तो मुस्लिम बादशाहों के समान उसके भी दासियों से कई बच्चे होते, जो फिर उसके मरने के बाद सत्ता की लड़ाई में दिखाई पड़ते।
 
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चंगेज खान ने मंगोल कबीलों को एकजुट किया और एक बड़े इलाके पर शासन किया। उसके राज्य में आज का कोरिया, चीन, रूस, पूर्वी यूरोप, भारत के कुछ हिस्से और दक्षिण-पूर्व एशिया आते थे। भारत सहित संपूर्ण रशिया, एशिया और अरब देश चंगेज खान के नाम से ही कांपते थे। चंगेज खान ने अपना अभियान चलाकर ईरान, गजनी सहित पश्‍चिम भारत के काबुल, कंधार, पेशावर सहित कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया था। इस समय चंगेज खान ने सिन्धु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया। इस तरह उत्तर भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।
 
एक नए अनुसंधान के अनुसार इस क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट और खून-खराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उज्बेकिस्तान, तिब्बत और बर्मा आदि देशों की बहुत बड़ी आबादी का सफाया ही हो गया था। कहते हैं कि मुसलमानों के लिए तो चंगेज खान और हलाकू खान अल्लाह का कहर था। कहा जाता है कि उसके पास इतना पैसा और जमीन थी कि वह अपने जीवनकाल में भी न तो इसका उपयोग कर पाया और न ही कभी हिसाब-किताब लगा सका। चंगेज खान पर लिखी एक प्रसिद्ध किताब के लेखक जैक वेदरफोर्ड का कहना है कि जीवनभर लूटकर सारी दुनिया से पैसा इकट्‍ठा करने वाले चंगेज खान ने कभी खुद या परिजनों पर खर्च नहीं किया। मरने के बाद भी उसे साधारण तरीके से दफनाया गया था।
 
 
रूस में वोल्गा नदी के किनारे पुरावेत्ताओं ने 750 साल पुराने एक शहर के अवशेषों को खोज निकाला है। इस शहर को चंगेज खान के वारिसों ने बसाया था। इन अवशेषों में 2 ईसाई गिरजाघर भी शामिल हैं जिनमें से 1 में पत्थर और मिट्टी पर बेहतरीन शिल्प व नक्काशी को उकेरा गया है। 'उकेक' नाम के इस शहर को 1227 में चंगेज खान की मौत के कुछ दशकों बाद ही बसाया गया था।
 
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि 13वीं सदी की शुरुआत में चंगेज खान और विशाल मंगोल साम्राज्य के उदय में अच्छे मौसम का योगदान हो सकता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं का कहना है कि मध्य मंगोलिया में पुराने पेड़ों के छल्लों से ये पता चला है कि करीब 1,000 साल पहले जब चंगेज खान तेजी से कामयाबी हासिल कर रहा था, उस दौरान मध्य एशिया में मौसम काफी सुहावना और नम था। इस दौरान घास काफी तेजी से बढ़ी और इससे घोड़ों को भरपूर चारा मिला।
 
नेशनल एकेडमी ऑफ सांइसेज के अध्ययन में बताया गया है कि चंगेज खान के शासन से पहले 1180 से 1190 के बीच कई बार सूखा पड़ा लेकिन 1211 से 1225 के दौरान साम्राज्य काफी बड़ा हो चुका था। इस दौरान मंगोलिया में असामान्य रूप से सामान्य बारिश हुई और मौसम सुहावना बना रहा। इस अध्ययन के सह-लेखक और पश्चिम वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक एमी हसेल ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया किअत्यधिक सूखे से अत्यधिक नम मौसम के रूप में आया यह बदलाव बताता है कि इंसानी गतिविधियों में मौसम की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी।
 
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी आदर्श स्थिति थी, जो किसी करिश्माई नेता के उदय के लिए, सेना के विकास और मजबूत सत्ता के लिए पूरी तरह से अनुकूल थी। उन्होंने बताया कि मौसम में नमी बढ़ने से हरियाली बढ़ी और इसका असर घोड़ों की ताकत में हुई वृद्धि के रूप में दिखाई दिया। अनुकूल मौसम की मदद से चंगेज खान छोटे-छोटे कबीलों में बिखरे मंगोलों के एकजुट कर एक बड़े साम्राज्य में तब्दील करने में कामयाब रहा।
 
 
मंगोल शासक चंगेज खान इतिहास का सबसे बड़ा हमलावर था। उसको लेकर एक दिलचस्प बात यह है कि उसके रक्तपात ने वातावरण से 70 करोड़ टन कार्बन हटाने में मदद की। एक नए अनुसंधान के अनुसार क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर खून-खराबा किया कि बड़ी आबादी का सफाया ही हो गया और जमीन जंगल में तब्दील हो गई।
 
समझा जाता है कि उसके हमलों में तकरीबन 4 करोड़ लोग मारे गए। उसने अपने विजय अभियान के बाद धरती की 22 फीसदी जमीन तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था। कार्नेजी संस्थान के वैश्विक पारिस्थितिकी विभाग ने अनुसंधान में पाया कि उसके हमलों से खेती वाली जमीन जंगलों में तब्दील हो गई जिसके पेड़ों ने तकरीबन 70 करोड़ टन कार्बन वातावरण से सोख लिया। यह मात्रा दुनिया में 1 साल में इस्तेमाल पेट्रोल से फैलने वाले प्रदूषण के बराबर है।
 
हालांकि पर्यावरणविदों के लिए यह बात हजम करना मुश्किल है लेकिन शायद यह वैश्विक तापमान को कम करने की मानव-निर्मित पहली घटना थी। प्रमुख अनुसंधानकर्ता जूलिया पोंगरात्ज के अनुसार वास्तव में मानव ने हजारों साल पहले ही तब पर्यावरण को प्रभावित करना शुरू कर दिया था, जब खेती के लिए जंगल काटे जाने लगे।
 
'डेली मेल' के अनुसार कार्नेजी अध्ययन ने कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों पर गौर किया जिसमें बड़ी तादाद में लोग मारे गए थे। इनमें यूरोप में ब्लैक डेथ, चीन में मिंग राजवंश तथा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका की विजय शामिल है। इन सभी घटनाओं में बड़े पैमाने पर आबादी का सर्वनाश हुआ और जंगलों की वापसी हुई लेकिन चंगेज खान के समय में यह काम काफी जल्दी हुआ। उसने कई बस्तियों का सफाया कर दिया। मंगोल शासक के समय में वनों के फिर बनने के लिए पर्याप्त समय था और उसके कारण काफी मात्रा में कार्बन सोख लिया गया।
 
'डेली मेल' ने डॉ. पोंगरात्ज के हवाले से कहा कि खान लेकिन विनाशक के रूप में ही याद किया जाएगा, पर्यावरण-हितैषी के रूप में नहीं। उन्होंने उम्मीद जताई कि उनका अध्ययन अन्य इतिहासकारों को पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव तथा अध्ययन के परंपरागत पहलू पर ध्यान केंद्रित करने को प्रोत्साहित करेगा।
 
== प्रारंभिक जीवन ==