"विलियम जोंस (भाषाशास्त्री)": अवतरणों में अंतर

fdeidfhiaf
छो 106.215.134.161 (Talk) के संपादनों को हटाकर InternetArchiveBot के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 1:
[[चित्र:Sir William Jones.jpg|right|thumb|300px|सर विलियम जोंस]]
Harsh'''सर विलियम जोंस''' (28 सितम्बर 1746 – 27 अप्रैल 1794)), अंग्रेज प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों का प्रारंभकर्ता।
 
[[लंदन]] में 28 सितंबर 1746 को जन्म। हैरो और आक्सफर्ड में शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही उसने [[इब्रानी भाषा|इब्रानी]], [[फ़ारसी भाषा|फारसी]], [[अरबी]] और [[चीनी]] भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त [[जर्मन भाषा|जर्मन]], [[इतावली]], [[फ़्रान्सीसी भाषा|फ्रेंच]], [[स्पेनी भाषा|स्पेनी]] और [[पुर्तगाली भाषा|पुर्तगाली]] भाषाओं पर भी उसका अच्छा अधिकार था। [[नादिर शाह|नादिरशाह]] के जीवनवृत का [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] से फ्रेंच भाषा में उसका अनुवाद 1770 में प्रकाशित हुआ। 1771 में उसने फारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। 1774 में "पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स" और 1783 में "मोअल्लकात" नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर उसने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी और अनुवाद किए।
 
[[विधि|कानून]] में भी उसने अच्छी पुस्तकें लिखीं है। उसी "आन द ला ऑव बेलमेंट्स" (1781) विशेष प्रसिद्ध है। 1774 से उसने अपना जीवन कानून के क्षेत्र में लगाया और 1783 में [[बंगाल]] के उच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीश नियुक्त हुआ। yउसीउसी वर्ष उसे "सर" की उपाधि मिली।
 
भारत में उसने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उसने [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] का अध्ययन किया और 1784 में "बंगाल एशियाटिक सोसाइटी" की स्थापना की जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में उसी ने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। उसी के [[कालिदास|कालिदासीय]] [[अभिज्ञानशाकुन्तलम्|अभिज्ञान शाकुंतलम]] के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीयदृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। [[योहान वुल्फगांग फान गेटे|गेटे]] आदि महान कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। [[कोलकाता|कलकत्ते]] में ही 17 अप्रैल 1794 के इस महापंडित का निधन हुआ।