"क्षेत्र": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
गीता के अनुसार क्षेत्र किसे कहते हैं। बताया गया
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
 
 
'''क्षेत्र''' के कई अर्थ हैं:
 
 
*[[क्षेत्र|अंचल]]
*[[खेत]]
*[[मैदान]]
*शरीर को '''क्षेत्र''' और उसके जाननेवाले को क्षेत्रज्ञ कहते हैं - ऐसा भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है । श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय में लिखा है '''महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च । इन्द्रियाणि दशैकं च पंच चेन्द्रियगोचराः ।। इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं संघातश्चेतना धृतिः । एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥'''      महाभूत , अहंता , बुद्धि , प्रकृति , दस इन्द्रियाँ , एक मन , पाँच विषय , इच्छा , द्वेष , दुःख , संघात , चेतन शक्ति , धृति - यह अपने विकारों सहित क्षेत्र संक्षेप में कहा है । पाँच स्थूल तत्त्व - पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश ; पाँच सूक्ष्म तत्त्व - रूप , रस , गंध , स्पर्श और शब्द ; पाँच कर्मेन्द्रियाँ - हाथ , पैर , लिंग , गुदा और मुँह ; पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख , कान , नाक , त्वचा और जीभ ; मन , बुद्धि , अहंकार , चेतना , धृति , संघात , इच्छा , द्वेष , सुख , दुःख और प्रकृति – इन इकतीस तत्त्वों के समुदाय को '''सविकार क्षेत्र''' कहते हैं । ( [https://satsangdhyan.blogspot.com/2020/10/s60-what-are-real-benefits-of-satsang.html महर्षि मेंहीं प्रवचन नंबर 60) महर्षि मेंहीं प्रवचन नंबर 60)]
 
*
==इन्हें भी देखें==
*[[क्षेत्रफल]]