"महिषासुर": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Mahisha.jpg|thumb|200px|महिषासुर की [[मैसूर]] में [[चामुंडीपर्वत]] पर मूर्ति]]पौराणिकपुराणिक कथाओंकथाओ के अनुसार '''महिषासुर''' एक [[असुर]] था। महिषासुर के पिता [[रंभ]], असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक [[भैंस]] से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से महिषासुर का आगमन हुआ। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में महिष का अर्थ भैंस होता है।
 
महिषासुर सृष्टिकर्ता [[ब्रह्मब्रम्हा]] का महान [[भक्त]] था और ब्रह्मदेवब्रम्हा जी ने उन्हें [[वरदान]] दिया था कि कोई भी [[देवता]] या [[दानव]] उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।
 
महिषासुर बाद में [[स्वर्ग लोक]] के देवताओं को परेशान करने लगा और [[पृथ्वी]] पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने [[स्वर्ग लोक|स्वर्ग]] पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और [[इन्द्र|इंद्र]] को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर [[त्रिमूर्ति]] [[ब्रह्मा|ब्रम्हा]], [[विष्णु]] और [[शिव|महेश]] के पास सहायता के लिए पहुँचे। सारे देवताओं ने फिर से मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गये।
 
कोई उपाय न मिलने पर देवताओं ने उसके विनाश के लिए [[दुर्गा]] का सृजन किया जिसे [[शक्ति]] और [[पार्वती]] के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का [[उत्सव|त्यौहार]] [[दुर्गा पूजा]] मनाते हैं और दसवें दिन को [[दशहरा|विजयादशमी]] के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
[[चित्र:Durga Puja DS.jpg|center|thumb|500px|[[दुर्गा पूजा]] में [[दुर्गा]] के [[महिषासुरमर्दिनी]] रूप की पूजा की जाती है।]]