"तमाशा": अवतरणों में अंतर

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[[श्रेणी:महाराष्ट्र के लोक नृत्य]]
शुरुआत
तमाशा [[नाटक]] का ही एक रूप है। इसकी शुरुआत [[महाराष्ट्र]] में 16वीं सदी में हुई थी। यह लोक कला यहाँ की अन्य कलाओं से थोड़ी अलग है। 'तमाशा' शब्द का अर्थ है- 'नाट्यप्रयोग' या '"मनोरंजन'"। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि संस्कृत के नाटक रूपों- प्रहसन और भान से इसकी उत्पत्ति हुई है। इस लोक कला के माध्यम से समाजिक विषयो से लेकर  [[महाभारत]] और [[रामायण]] जैसी पौराणिक कथाओं कोभी को सुनाया जाता है। लोकगीत और लावणी इस कार्यक्रम का एक विशेष और महत्वपूर्ण आकर्षण है। इसमें [[ढोलक|ढोलकी]], [[ड्रम]], [[तुनतुनी]], [[मंजीरा]], [[डफ]], हलगी, कड़े, [[हारमोनियम]] और [[घुँघरुओं]] का प्रयोग किया जाता है।
 
तमाशा [[नाटक]] का ही एक रूप है। इसकी शुरुआत [[महाराष्ट्र]] में 16वीं सदी में हुई थी। यह लोक कला यहाँ की अन्य कलाओं से थोड़ी अलग है। 'तमाशा' शब्द का अर्थ है- 'नाट्यप्रयोग' या 'मनोरंजन'। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि संस्कृत के नाटक रूपों- प्रहसन और भान से इसकी उत्पत्ति हुई है। इस लोक कला के माध्यम से समाजिक विषयो से लेकर  [[महाभारत]] और [[रामायण]] जैसी पौराणिक कथाओं कोभी सुनाया जाता है। लोकगीत और लावणी इस कार्यक्रम का एक विशेष और महत्वपूर्ण आकर्षण है। इसमें [[ढोलक|ढोलकी]], [[ड्रम]], [[तुनतुनी]], [[मंजीरा]], [[डफ]], हलगी, कड़े, [[हारमोनियम]] और [[घुँघरुओं]] का प्रयोग किया जाता है।
 
स्थान
मुख्य रूप से तमाशा महाराष्ट्र के 'कोल्हाटी' समुदाय द्वारा किया जाता है। इस कला को प्रस्तुत करने के लिए किसी मंच इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती है। इसे किसी भी खुले स्थान पर भी किया जा सकता है।
 
कृष्ण संबंधी कथाएँ
मुख्य रूप से तमाशा महाराष्ट्र के 'कोल्हाटी' और पिछडे जाती के समुदाय द्वारा किया जाता था। समय के साथ इस कला माध्यम से कई और जाती या धर्म के लोग भी जुडे। इनमे कुछ प्रमुख और प्रख्यात नाम जैसे शाहीर पठ्ठे बापूराव, कवि बशीर मोमीन कवठेकर<ref>"पद्मश्री विखे पाटील साहित्य पुरस्कार जाहीर" [https://maharashtratimes.indiatimes.com/ahmednagar-news/award/articleshow/38986081.cms], “[[Maharashtra Times]]", Published on 11-Aug-2014</ref>, मधुकर नेराळे, इंदुरीकर, राम नगरकर है। कवि बशीर मोमीन कवठेकर करीब 1970 के दशक से तमाशा कलाकारो को अपने लेखन सामुग्री - लावणी, लोकगीत और वगनाट्य से संपन्न कर रहे है। कवि बशीर मोमीन कवठेकर के इस अनमोल योगदान और कर्तृत्व के चलते महाराष्ट्र सरकार ने उन्हे सण 2019 मे 'विठाबाई नारायणगावकर जिवन गौरव पुरस्कार' से सम्मानित किया<ref>[https://www.esakal.com/pune/vithabai-narayangaonkar-award-momin-kawhetkar-163510 बी. के. मोमीन कवठेकर यांना विठाबाई नारायणगावकर पुरस्कार जाहीर] “Sakal, a leading Marathi Daily”, 2-Jan-2019</ref>। यह पुरस्कार उनके कला और सांस्कृतिक क्षेत्र मे किए हुए अभूतपूर्व कार्य का यथोचित सम्मान है।
तमाशा के शुरू होते ही सबसे पहले भगवान गणेश की वंदना की जाती है। इसके बाद गलवाना या गौलनियर गाए जाते हैं। मराठी धर्म-साहित्य में ये कृष्णलीला के रूप हैं, जिसमें भगवान कृष्ण के जन्म की विभिन्न घटनाओं को दर्शाया जाता है।
 
इस कला को प्रस्तुत करने के लिए किसी मंच इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती है। इसे किसी खुले स्थान पर भी किया जा सकता है।
 
तमाशा नाट्य के भाग
तमाशा को चार भागों में या चार अंकों में प्रदर्शित करते है, ये क्रमशः गण,गवलान,बताऊनी और अंत में मुख्य नत्य वघ होता है
 
तमाशा को चार भागों में या चार अंकों में प्रदर्शित करते है, ये क्रमशः गण,गवळण,बताऊनी और अंत में मुख्य नत्य वघ होता है। तमाशा के शुरू होते ही सबसे पहले भगवान गणेश की वंदना की जाती है। इसके बाद गवळण गाए जाते हैं। मराठी धर्म-साहित्य में ये कृष्णलीला के रूप हैं, जिसमें भगवान कृष्ण के जन्म की विभिन्न घटनाओं को दर्शाया जाता है। इसके बाद लावणी और मनोरंजक लोकगीतो को पेश किया जात है। लावणी एक शृंगारिक गित होता हे जिसे एक या अनेक नर्तिकिया सादर करती है। लावणी पेश करणे वाले प्रसिद्ध कलाकारो में प्रमुख नाम विठाबाई नारायणगावकर, यमुनाबाई वाईकर, कांताबाई सातारकर , सुरेखा पुणेकर, मंगला बनसोडे है। अंत में वगनाट्य प्रस्तुत किया जाता हे जिसके विषय सामाजिक, ऐतिहासिक या पौराणिक भी होते है। वगनाट्य लेखको मे भी बशीर मोमीन कवठेकर का नाम प्रमुखरूप से लिया जाता है। उनके लिखित ऐतिहासिक वगनाट्य 'भंगले स्वप्न महाराष्ट्रा ', 'भक्त कबीर' तथा सामाजिक विषयो से जुडी 'सुशीला, मला माफ कर', 'बाईने दावला इंगा' को काफी सराहा गया है।<ref>Khanduraj Gaykwad, [http://www.navakal.org/images/epaper/20-jan-2019.pdf लेखणीतून ग्रामीण लोककला संपन्न करणारे- बशीर मोमीन कवठेकर!], “Navakal, 20-Jan-2011”</ref>
 
तमाशा पर आधारित किताबे / लेखण
 
बशीर मोमीन कवठेकर का और एक महत्वपूर्ण योगदान यह भी है की उन्होने एक किताब “कलावंतांच्या आठवणी (अभ्यास पुस्तक)”<ref>[[Prakash Khandge]]. "उपेक्षित कलाक्षेत्राच्या उपयुक्त नोंदी", Loksatta, Mumbai, Published on 10-Dec-2000.</ref> लिखी जो इस क्षेत्र से जुडे कलाकारो की जाणकारी संग्रहित करता है। इस तरह कला प्रसार के साथ ही इसे संवर्धन करणेवालो कलाकारो के योगदान और स्म्रिती को जिवीत रख सकते है। इस कला क्षेत्र सी जुडी कुछ और महत्वपूर्ण किताबो में "तमाशा : कला आणि जीवन (डॉ. सुनील चंदनशिवे)", "वगसम्राज्ञी कांताबाई सातारकर" - ( डॉ. संतोष खेडलेकर) का समावेश होता है।
 
संदर्भ
"https://hi.wikipedia.org/wiki/तमाशा" से प्राप्त