"गणेशशंकर विद्यार्थी": अवतरणों में अंतर

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== जीवन ==
पंडित गणेशशंकर 'विद्यार्थी' का जन्म आश्विन शुक्ल 14, रविवार सं. 1947 (1890 ई.) को अपनी ननिहाल, [[इलाहाबाद]] के अतरसुइया मोहल्ले में श्रीवास्तव (कायस्थ) परिवार में हुआ। इनके पिता मुंशी जयनारायण कायस्थ हथगाँव, जिला [[फतेहपुर, उत्तर प्रदेश|फतेहपुर]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के निवासी थे। माता का नाम गोमतीदेवी था। पिता [[ग्वालियर]] रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे। वहीं विद्यार्थी जी का बाल्यकाल बीता तथा शिक्षा-दीक्षा हुई। विद्यारंभ [[उर्दू भाषा|उर्दू]] से हुआ और 1905 ई. में भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की। 1907 ई. में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में [[कानपुर]] से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के [[कायस्थ पाठशाला, प्रयाग|कायस्थ पाठशाला]] कालेज में भर्ती हुए। उसी समय से पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और [[भारत में अंग्रेज़ी राज]] के यशस्वी लेखक [[पंडित सुन्दर लाल कायस्थ ]] इलाहाबाद के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक '''कर्मयोगी''' के संपादन में सहयोग देने लगे। लगभग एक वर्ष कालेज में पढ़ने के बाद 1908 ई. में कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. मासिक की नौकरी की। परंतु अंग्रेज अफसर से झगड़ा हो जाने के कारण उसे छोड़कर पृथ्वीनाथ हाई स्कूल, [[कानपुर]] में 1910 ई. तक अध्यापकी की। इसी अवधि में [[सरस्वती पत्रिका|सरस्वती]], '''कर्मयोगी''', '''स्वराज्य''' (उर्दू) तथा '''हितवार्ता''' (कलकत्ता) में समय समय पर लेख लिखने लगे।ha
 
1911 में विद्यार्थी जी [[सरस्वती पत्रिका|सरस्वती]] में पं॰ [[महावीर प्रसाद द्विवेदी|महावीरप्रसाद द्विवेदी]] के सहायक के रूप में नियुक्त हुए। कुछ समय बाद "सरस्वती" छोड़कर "अभ्युदय" में सहायक संपादक हुए। यहाँ सितंबर, 1913 तक रहे। दो ही महीने बाद 9 नवम्बर 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक [[प्रताप]] के नाम से निकाला। इसी समय से 'विद्यार्थी' जी का राजनीतिक, सामाजिक और प्रौढ़ साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ। पहले इन्होंने [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]] को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद आप उनके अनन्य भक्त हो गए। श्रीमती [[एनी बेसेन्ट|एनीं बेसेंट]] के 'होमरूल' आंदोलन में विद्यार्थी जी ने बहुत लगन से काम किया और कानपुर के मजदूर वर्ग के एक छात्र नेता हो गए। कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर "प्रताप" में लेख लिखने के संबंध में ये 5 बार जेल गए और "प्रताप" से कई बार जमानत माँगी गई। कुछ ही वर्षों में वे उत्तर प्रदेश (तब संयुक्तप्रात) के चोटी के कांग्रेस नेता हो गए। 1925 ई. में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की स्वागत-समिति के प्रधानमंत्री हुए तथा 1930 ई. में प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुए। इसी नाते सन् 1930 ई. के [[सत्याग्रह आंदोलन]] के अपने प्रदेश के सर्वप्रथम "डिक्टेटर" नियुक्त हुए।