"बोथरा गौत्र": अवतरणों में अंतर
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दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि ने जैन धर्म का रहस्य समझाते हुए आत्म-कल्याण की प्रेरणा दी। फलस्वरूप उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। गुरूदेव ने बोहित्थरा गोत्र की स्थापना की। गुरुदेव ने कहा- तुम्हारा आयुष्य अल्प है, अतः आत्म-साधना में प्रवृत्त हो जाओ।
बोहित्थ का परिवार विशाल था। उसने चार विवाह किये थे, जिनसे 35 संतानों का जन्म हुआ था।
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= बोथरा गोत्र का गौरव =
[[चित्तौड़ राज्य]] पर जब यवनों का आक्रमण हुआ तब चित्तौड़ के राजा रायसिंह ने राजा बोहित्थ को सहायता हेतु बुलाया। बोहित्थ समझ गये कि गुरुदेव की भविष्यवाणी के अनुसार मेरा आयुष्य पूरा होने जा रहा है। उन्होंने अपना राज्य बड़े पुत्र श्री कर्ण बोथरा को सौंपा और स्वयं चौविहार उपवास कर युद्ध भूमि में उतर पड़े। शत्रु को तो भगा दिया पर स्वयं अपने प्राण न बचा सके। समाधि पूर्वक मृत्यु प्राप्त कर वे बावन वीरों में एक हनुमंत वीर बने। पुनरासर में उनका भव्य मन्दिर बना हुआ है।
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