"वेदाङ्ग ज्योतिष": अवतरणों में अंतर

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: ''तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्येतिषं वेद स वेद यज्ञान् ॥'' (आर्चज्यौतिषम् ३६, याजुषज्याेतिषम् ३)
 
चारो वेदों के पृथक् पृथक् ज्योतिषशास्त्र थे। उनमें से सामवेद का ज्यौतिषशास्त्र अप्राप्य है, शेष तीन वेदों के ज्यौतिषात्रज्यौतिष शास्त्र प्राप्त होते हैं।
* (१) [[ऋग्वेद]] का ज्यौतिष शास्त्र - आर्चज्याेतिषम् : इसमें ३६ पद्य हैं।
* (२) [[यजुर्वेद]] का ज्यौतिष शास्त्र – याजुषज्याेतिषम् : इसमें ४४ पद्य हैं।
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:: (अर्थ : जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांगशास्त्रों मे गणित अर्थात् ज्याेतिष का स्थान सबसे उपर है।)''
 
वेदांगज्याेतिष में वेदाें में जैसा (शुक्लयजुर्वेद २७।४५, ३०।१५) ही पाँच वर्षाें का एक युग माना गया है (याजुष वे.ज्याे. ५)। वर्षारम्भ उत्तरायण, शिशिर ऋतु अाैर माघ अथवा तपस् महीने से माना गया है (याजुष वे.ज्याे. ६)। युग के पाँच वर्षाें के नाम- संवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर, इद्वत्सर अाैर वत्सर हैं। अयन दाे हैं- उदगयन और दक्षिणायन। ऋतु छः हैं- शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद् अाैर हेमन्त। महीने बारह माने गए हैं - तपः (माघ), तपस्य (फाल्गुन), मधु (चैत्र), माधव (वैशाख), शुक्र (ज्येष्ठ), शुचि (अाषाढ), नभः (श्रावण), नभस्य (भाद्र), इष (आश्विन), उर्ज (कार्तिक), सहः (मार्गशीर्ष) और सहस्य (पाैष)। महीने शुक्लादि कृष्णान्त हैं। अधिकमास शुचिमास अर्थात् अाषाढमास में तथा सहस्यमास अर्थात् पाैष में ही पडता है, अन्य मासाें में नहीं। पक्ष दाे हैं- शुक्ल और कृष्ण। तिथि शुक्लपक्ष में १५ और कृष्णपक्ष में १५ माने गए हैं। तिथिक्षय केवल चतुर्दशी में माना गया है। तिथिवृद्धि नहीं मानी गइ है। १५ मुहूर्ताें का दिन अाैर १५ मुहूर्ताें का रात्रि माने गए हैं।
 
==त्रैराशिक नियम==