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पंचतन्त्र में उक्त कथाओं के अतिरिक्त बहुत सी कहानियों का संग्रह है | इस प्रकार पंचतन्त्र एक उपदेशपरक रचना है। इसमें लेखकने अपनी व्यवहार कुशलता राजनैतिकपटुता एवं ज्ञान का परिचय दिया है। नीति-कथाओं के मानवेतर पात्र प्रायः दो प्रकार के होते हैं, सजीव प्राणी तथा अचेतन पदार्थ। पंचतन्त्र में भी ये दो प्रकार के पात्र देखे जाते हैं- पशुओं में [[शेर|सिंह]], व्याघ्र, [[शियार|शृगाल]], [[खरगोश|शशक]], [[बैल|वृषभ]], [[गधा]], आदि, पक्षियों में काक, [[उल्लू|उलूक]], [[कबूतर|कपोत]], [[मोर|मयूर]], चटक, [[तोता|शुक]] आदि तथा इतर प्राणियों में सर्प, [[नेवला|नकुल]], [[चींटी|पिपीलिका]] आदि। इनके अतिरिक्त नदी, समुद्र, वृक्ष, पर्वत, [[गुफ़ा|गुहा]] आदि भी अचेतन पात्र हैं, जिन पर कि मानवीय व्यवहारों का आरोप किया गया है। पंचतन्त्र में मानव को व्यवहार कुशल बनाने का प्रयास अत्यधिक सरल एवं रोचक शैली में किया गया है। आधुनिक युग में बच्चों को इन कथाओं के बारे में अवश्य पढाया जाना चाहिये | पंचतन्त्र के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए डॉ॰ [[वासुदेव शरण अग्रवाल]] ने लिखा है कि-
 
:''"पंचतन्त्र एक नीति शास्त्र या नीति ग्रन्थ है- नीति का अर्थ जीवन में बुद्धि पूर्वक व्यवहार करना है। चतुरता और धूर्तता नहीं, नैतिक जीवन वह जीवन है जिसमें मनुष्य की समस्त शक्तियों और सम्भावनाओं काविकासका विकास हो अर्थात् एक ऐसे जीवन की प्राप्ति हो जिसमें आत्मरक्षा, धन-समृद्धि, सत्कर्म, मित्रता एवं विद्या की प्राप्ति हो सके और इनका इस प्रकार समन्वय किया गया हो कि जिससे आनंद की प्राप्ति हो सके, इसी प्रकार के जीवन की प्राप्ति के लिए, पंचतन्त्र में चतुर एवं बुद्धिमान पशु-पक्षियों के कार्य व्यापारों से सम्बद्ध कहानियां ग्रथित की गई हैं। पंचतन्त्र की परम्परा के अनुसार भी इसकी रचना एक राजा के उन्मार्गगामी पुत्रों की शिक्षा के लिए की गई है और लेखक इसमें पूर्ण सफल रहा है।"''
 
== सन्दर्भ ==