"वृन्द": अवतरणों में अंतर
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== जीवन परिचय ==
अन्य प्राचीन कवियों की भाँति वृन्द का जीवन परिचय भी प्रमाणिक नहीं है। पं॰ [[रामनरेश त्रिपाठी]] इनका जन्म सन् 1643 में [[मथुरा]] (उ.प्र.) क्षेत्र के किसी गाँव का बताते हैं, जबकि [[डॉ॰ नगेन्द्र]] ने मेड़ता गाँव को इनका जन्म स्थान माना है। इनका पूरा नाम 'वृन्दावनदास' था। वृन्द जाति के सेवक अथवा भोजक थे। वृन्द के पूर्वज [[बीकानेर]] के रहने वाले थे परन्तु इनके पिता रूप जी [[जोधपुर]] के राज्यान्तर्गत मेड़ते में जा बसे थे। वहीं सन्
मुगल सम्राट [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] के यहाँ ये दरबारी कवि रहे। मेड़ते वापस आने पर जसवन्त सिंह के प्रयास से औरंगजेब के कृपापात्र नवाब मोहम्मद खाँ के माध्यम से वृन्द का प्रवेश शाही दरवार में हो गया़। दरबार में "पयोनिधि पर्यौ चाहे मिसिरी की पुतरी" नामक समस्या की पूर्ति करके इन्होंने [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] को प्रसन्न कर दिया। उसने वृन्द को अपने पौत्र अजी मुशशान का अध्यापक नियुक्त कर दिया। जब अजी मुशशान बंगाल का शाशक हुआ तो वृन्द उसके साथ चले गए। सन्
== कृतियाँ==
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