"सिंधु घाटी सभ्यता": अवतरणों में अंतर
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|name = सिंधु घाटी सभ्यता
|map = Indus Valley Civilization, Mature Phase (2600-1900 BCE).png
|mapalt = सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में,
|region = [[दक्षिण एशिया]]
|typesite = [[हड़प्पा]]
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[[चित्र:Indus Valley Civilization, Early Phase (3300-2600 BCE).png|300x350px|thumbnail|सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750 ई॰पू॰]]
'''सिन्धु घाटी सभ्यता''' (3300 ई॰पू॰ से 1700 ई॰पू॰ तक, परिपक्व काल: 2550 ई॰पू॰ से 1750 ई॰पू॰){{cn|date=अप्रैल 2020}} विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से [[दक्षिण एशिया]] के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान ,पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर [[भारत]] में फैली है। [[प्राचीन मिस्र]] और [[मेसोपोटामिया]] की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से, सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका [[नेचर]] में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम
इसका विकास [[सिंधु नदी|सिंधु]] और घघ्घर/
7 वीं शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने [[पंजाब]] प्रांत में ईटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहाँ से बनी बनाई इटे मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद 1826 में [[चार्ल्स मैसेन]] ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। [[कनिंघम]] ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में [[कराची]] से [[लाहौर]] के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में [[भारतीय पुरातत्व विभाग]] की स्थापना की गयी। 1902 में ''लार्ड कर्जन'' द्वारा ''जॉन मार्शल'' को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। 1921 में [[दयाराम साहनी]] ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व [[राखलदास बेनर्जी]] को मोहनजोदडो का खोजकर्ता माना गया।
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== नामोत्पत्ति ==
सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक था। यह इन्दुस या इन्डस नदी के किनारे बसने वाली सभ्यता थी और अपनी भौगौलिक उच्चारण की भिन्नताओं की वजहों से इस
इंडियन पुरातत्व विभाग के महार्निदेशक जॉन मार्शल ने 1924 में अन्दुस तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
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== विस्तार ==
[[चित्र:IVC Map.png|thumbnail|right|260px|हड़प्पा संस्कृति के स्थल]]
सभ्यता का क्षेत्र संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र से अनेक गुना बड़ा और विशाल था। इस परिपक्व सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा [[सिन्ध]] में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ। इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में मांडा में चेनाब नदी के तट से लेकर दक्षिण में [[दैमाबाद]] (महाराष्ट्र) तक और पश्चिम में [[बलूचिस्तान]] के [[मकरान]] समुद्र तट के सुत्कागेनडोर पाक के सिंंध प्रांत से लेकर उत्तर पूर्व में आलमगिरपुुुर में हिरण्य तक [[मेरठ]] और कुरुक्षेत्र तक था। प्रारंभिक विस्तार जो प्राप्त था उसमें सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था (उत्तर में जम्मू के माण्डा से लेकर दक्षिण में गुजरात के भोगत्रार तक और पश्चिम में अफगानिस्तान के [[सुत्कागेनडोर]] से पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ तक था और इसका क्षेत्रफल
परिपक्व अवस्था वाले कम जगह ही हैं। [https://historyqna.com/सिंधु-घाटी-सभ्यता/ सिन्धु घाटी सभ्यता]{{Dead link|date=जुलाई 2020 |bot=InternetArchiveBot }} (The Indus Civilization) की जानकारी से पूर्व भू-वैज्ञानिकों एवं विद्वानों का मानना था कि मानव सभ्यता का आविर्भाव आर्यों से हुआ।
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== अवसान ==
{{main|वैदिक सभ्यता}}
यह सभ्यता मुख्यतः 2600 ई॰पू॰ से 1900 ई॰पू॰ तक रही। ऐसा आभास होता है कि यह सभ्यता अपने अंतिम चरण में ह्रासोन्मुख थी। इस समय मकानों में पुरानी ईंटों के प्रयोग की जानकारी मिलती है। इसके विनाश के कारणों पर विद्वान सहमत नहीं हैं। वाल्मिकि रामायण के उत्तरकाण्ड के १००वां और १०१वां सर्ग मे है कि सिन्धु नदी और उसके तट पर बसे गन्धर्वों से राम के भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के लिये भीषण युद्ध किया था जो सात दिन और सात रात तक चलता रहा।{{citation needed}} सिन्धु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे: आक्रमण, जलवायु परिवर्तन एवं पारिस्थितिक असंतुलन, बाढ़ तथा भू-तात्विक परिवर्तन, महामारी, आर्थिक कारण आदि। ऐसा लगता है कि इस सभ्यता के पतन का कोई एक कारण नहीं था बल्कि विभिन्न कारणों के मेल से ऐसा हुआ। जो अलग-अलग समय में या एक साथ होने कि सम्भावना है। मोहनजोदड़ो में नगर और जल निकास कि व्यवस्था से महामारी कि सम्भावना कम लगती है। भीषण अग्निकान्ड के भी प्रमाण प्राप्त हुए है। मोहनजोदड़ो के एक कमरे से १४ नर कंकाल मिले है जो आक्रमण, आगजनी, महामारी के संकेत है।{{citation
== चित्र दीर्घा ==
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