"उपभाषा विज्ञान": अवतरणों में अंतर
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वर्णनात्मक [[भाषाविज्ञान]] की आधुनिकतम मान्यता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की वाक्प्रवृत्ति पूर्णतया समान नहीं होती। किंतु यह असमानता इतनी स्थूल नहीं होती कि वे एक दूसरे की बात न समझ सकें। इस प्रकार व्यक्तिगत वाक्प्रवृत्तियों का समन्वित रूप व्यक्तिबोली है और व्यक्तिबोलियों का समन्वित रूप उपबोली तथा उपबोलियों का समन्वित रूप बोली है। इसी प्रकार बोलियों की समन्वित इकाई भाषा है। उपर्युक्त धारणा से यह स्पष्ट है कि व्यक्ति बोली और भाषा के बीच बोधगम्यता के ही विविध स्तर सक्रिय होते हैं। भाषा के अध्ययन में अधिकतर उपबोली के स्तर तक विचार किया जाता है किंतु बोली के संदर्भ में व्यक्तिबोलियों का भी महत्व होता है। भाषीय स्तर पर व्यक्तिबोली एवं उपबोली का एक युग्म होता है और बोली तथा भाषा का दूसरा। जिस प्रकार बोली और भाषा या भाषाओं के सीमावर्ती क्षेत्रों में रूपवैशिष्ट्य होते हुए भी एक दूसरे को समझना सरल होता है, उसी प्रकार या उससे भी अधिक बोधगम्यता बोली या उपबोली की सीमाओं पर होती है। सीमावर्ती क्षेत्रों में पाई जानेवाली ऐसी बोधगम्यता के कारण ही भाषा और बोली या बोली या उपबोली के बीच कोई स्पष्ट विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती।
एक भाषीय क्षेत्र में स्थानीय भेदों के अध्ययन को
समरूप रेखाओं द्वारा विभक्त क्षेत्र तीन होते हैं :
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