"स्वनविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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स्वनविज्ञान में विभिन्न ध्वनियों के अध्ययन के साथ उनके उत्पादन की प्रक्रिया का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है। इसी अध्ययन क्रम में ध्वनि उत्पादक विभिन्न अंगों की रचना और उनकी भूमिका का भी अध्ययन किया जाता है। ध्वनिगुण और उसकी सार्थकता का निरूपण भी किया जाता है। स्वन के साथ ‘स्वनिम’ का भी विवेचन-विश्लेषण किया जाता है। भाषा की उच्चारणात्मक लघुत्तम इकाई अक्षर के स्वरूप और उनके वर्गीकरण पर भी विचार किया जाता है। समय, परिस्थिति और प्रयोगानुसार विभिन्न ध्वनियों में परिवर्तन होता रहता है। ध्वनि-परिवर्तन के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों ने कुछ ध्वनि नियम निर्धारित किए हैं। इन नियमों के अध्ययन के साथ ध्वनि-परिवर्तन की दिशाओं और ध्वनि-परिवर्तन के कारणों पर विचार किया जाता है।
 
[[चित्र:Places of articulation.svg|right|300px|thumb|1. बाह्योष्ठ्य (exo-labial) <br /> 2. अन्तःओष्ठ्य (endo-labial)<br />3. दन्त्य (dental) <br />4. वर्त्स्य (alveolar) <br />5. post-[[alveolar]]<br />6. prä-[[palatal]]<br /> 7. तालव्य (palatal)<br />8. मृदुतालव्य (velar)<br />9. अलिजिह्वीय (uvular)<br />10. ग्रसनी से (pharyngal) <br />11. श्वासद्वारीय (glottal)<br />12. उपजिह्वीय (epiglottal)<br />13. जिह्वामूलीय (Radical)<br />14. पश्चपृष्ठीय (postero-dorsal)<br />15. अग्रपृष्ठीय (antero-dorsal) <br />16. जिह्वापाग्रीय (laminal)<br />17. जिह्वाग्रीय (apical)<br />18. sub-laminal]]
 
== इन्हें भी देखें ==