"भाषाविज्ञान का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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==== पाणिनि-पश्चात् का भाषाध्ययन ====
अष्टाध्यायी की टीका एवं उसकी मौलिक व्याख्या की दृष्टि से क्रमशः [[काशिकावृत्ति|काशिका]] एवं कौमुदी ग्रन्थों का विशिष्ट महत्त्व है। कौमुदी ग्रन्थों में [[
[[मण्डन मिश्र]] प्रसिद्ध भाषाचिन्तक थे। इन्होंने 'स्फोटसिद्धि' नामक ग्रन्थ की रचना की। आप
'''भाषाविज्ञान को भृर्तहरि की देन : [[वाक्यपदीय]] का महत्त्व'''
पाणिनि-पतंजलि-पश्चात् के भाषाशास्त्रियो में वाक्यपदीयकार [[
*(१) भाषा की इकाई [[वाक्य और वाक्य के भेद|वाक्य]] ही होता है, चाहे उसका अस्तित्व एक वर्ण के रूप में क्यों न हो।
*(२) वाक्शक्ति विश्व-व्यवहार का सर्वप्रमुख आधार है।
*(३) वाक्-प्रयोग एक मनोवैज्ञानिक क्रिया होता है, जिसमें वक्ता और श्रोता दोनों का होना आवश्यक है। ज्ञातव्य है कि गार्डीनर, जेस्पर्सन एवं चॉम्सकी प्रभृति अधिक चर्चित आधुनिक भाषाविज्ञानी भी इसका पूर्ण समर्थन करते हैं।
*(४) हर वर्ण में उस के अतिरिक्त भी किंचित वर्णांश सम्मिलित रहता है। अमरीकी भाषाविज्ञान ने भी प्रयोग द्वारा इसे सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है। भौतिक विज्ञान भी यही बतलाता है।
*(५) ध्वनि उत्पादन, उच्चारण, ध्वनि-ग्रहण, स्फोट आदि का विस्तृत विवेचन भर्तृहरि ने किया है। भाषाविज्ञान के ये प्रमुख विषय हैं।
*(६) भर्तृहरि अर्थग्रहण में लोक प्रसिद्ध को ही महत्त्व देते हैं। पतंजलि के बाद इन्होंने ही इस पर विशद रूप से विचार किया है।
*(७) भर्तृहरि ने शिष्ट भाषा के साथ-साथ लोक भाषा के अध्ययन पर भी बहुत बल दिया है। यही प्रवृति आज सम्पूर्ण विश्व मे दिखाई पड़ती है। इस प्रकार, भर्तृहरि के भाषा सिद्धांत अत्यन्त व्यापक अथच पूर्ण वैज्ञानिक हैं।
;कौण्ड भट्ट एवं नागेश भट्ट :
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