"नवधा भक्ति": अवतरणों में अंतर

सर्वस्व
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जो भक्ति मार्गियो ने केवल जगत मे एक ही पुरुष कृष्ण जी के प्रति प्रेम हेतु बदल कर गलत गलत रुप मे मनुष्य समाज को दिया है। जबकि मनुष्य को भगवान रुपी दो अर्द्धांग अपने पति+पत्नी प्रेम से कैसे- नो रुपो मे एकाकार हो कर जीवंत अवस्था में ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें, दिया था। आओ जाने-की मै का अन्तर भेद मिटाना ही मन्त्र है। मै का मैं में जो त्राण यानि “लय'” करना ही मन्त्र है।इस अभेद स्थिति कि प्राप्ति हेतु नो अवस्था है।जो गुरु द्धारा बतायी गयी साधना विधि से भक्ति<ref>{{Cite web|url=https://os.me/bhakti-devotional-service/|title=Bhakti - Devotional Service and 3 Types of Devotees|date=2011-08-09|website=Om Swami|language=en-US|access-date=2020-10-27}}</ref> यानि “एकीकरण” प्राप्ति को ही “वैधि भक्ति” कहते है। मैं जब अपने मे लय होकर अपने द्रष्टा से स्रष्टा होने का ज्ञान प्राप्त करता है। कि- मैं ही आजन्मा-कर्ता-अकर्ता-भोगता ओर शेष हूँ। तब जो अभेद स्थिति होती है। उसी का नामान्तर नाम है- भक्ति। अर्थात जो साधक या प्रेमी या भक्त यानि बटा हुआ है, वो ई माने एकाकार हुआ है। इस बटे हुये भक्त के नो भाग है:–