"रानी लक्ष्मीबाई": अवतरणों में अंतर

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:सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
:बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
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:राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
:सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
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:चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
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:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
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:छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
:कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
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:झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
:मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
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:जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
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:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
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:विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
:अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,