"पीपल": अवतरणों में अंतर
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==देव वृक्ष ==
[[चित्र:pipal.jpg|thumb|left|240px|पीपल का पत्ता]]
[[भारतीय संस्कृति]] में पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। [[स्कन्द पुराण]] में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।{{Ref_label|मूल|क|none}} पीपल [[भगवान विष्णु]] का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है। भगवान [[कृष्ण]] कहते हैं- समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ।{{Ref_label|गीता|ख|none}} स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।{{Ref_label|सर्वदेवता|ग|none}} पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं। पीपल वृक्ष की प्रार्थना के लिए अश्वत्थस्तोत्र में पीपल की प्रार्थना का मंत्र भी दिया गया है। {{Ref_label|मंत्र|घ|none}} प्रसिद्ध ग्रन्थ ''व्रतराज'' में अश्वत्थोपासना में पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है। अश्वत्थोपनयनव्रत में महर्षि शौनक द्वारा इसके महत्त्व का वर्णन किया गया है। अथर्ववेदके उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। यज्ञ में प्रयुक्त किए जाने वाले 'उपभृत पात्र' (दूर्वी, स्त्रुआ आदि) पीपल-काष्ट से ही बनाए जाते हैं। पवित्रता की दृष्टि से यज्ञ में उपयोग की जाने वाली समिधाएं भी आम या पीपल की ही होती हैं। यज्ञ में अग्नि स्थापना के लिए ऋषिगण पीपल के काष्ठ और शमी की लकड़ी की रगड़ से अग्नि प्रज्वलित किया करते थे।<ref>{{cite web|url=http://hindi.webdunia.com/religion/religion/article/0706/11/1070611072_1.htm|title=धर्म संस्कृति के पुण्य प्रतीक वृक्ष|access-date=[[६ नवंबर]] [[२००९]]|format=|publisher=वेबदुनिया|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20071107113005/http://hindi.webdunia.com/religion/religion/article/0706/11/1070611072_1.htm|archive-date=7 नवंबर 2007|url-status=dead}}</ref> ग्रामीण संस्कृति में आज भी लोग पीपल की नयी कोपलों में निहित जीवनदायी गुणों का सेवन कर उम्र के अंतिम पडाव में भी सेहतमंद बने रहते हैं। <ref>{{cite web|url=http://newswing.com/?p=547|title=प्रकृति से चुनें ऊर्जादायक टॉनिक|access-date=[[६ नवंबर]] [[२००९]]|format=|publisher=न्यूज़विंग|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20071018132506/http://newswing.com/?p=547|archive-date=18 अक्तूबर 2007|url-status=live}}</ref> बर्बरीक (खाटू श्याम जी ) ने एक ही बाण से पीपल के वृक्ष के सारे पत्तों में छेद कर दिया था तथा उन्होंने श्री कृष्ण को शीश का दान पीपल के वृक्ष के नीचे ही दिया था |
==पूजन एवं व्रत ==
[[File:Somvati Amavasya Vrat (सोमवती अमावस्या व्रत ).jpg|thumb|Somvati Amavasya Vrat (सोमवती अमावस्या व्रत )]]
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