"बराबर गुफाएँ": अवतरणों में अंतर
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'''बराबर गुफाएं''' भारत के [[बिहार]] राज्य के जहानाबाद जिले में [[गया]] से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुफाएँ हैं और चट्टानों को काटकर बनायी गयी सबसे पुरानी गुफाएं हैं।<ref name="flo"/> इनमें से अधिकांश गुफाओं का संबंध [[मौर्य राजवंश|मौर्य काल]] (322-185 ईसा पूर्व) से है और कुछ में [[अशोक के अभिलेख|अशोक के शिलालेखों]] को देखा जा सकता है।
ये गुफाएं बराबर (चार गुफाएं) और नागार्जुनी (तीन गुफाएं) की
== बराबर पहाड़ी की गुफाएं ==
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बराबर पहाड़ी में चार गुफाएं शामिल हैं - कर्ण चौपङ, लोमस ऋषि, सुदामा गुफा और विश्व झोपड़ी . ''सुदामा'' और ''लोमस ऋषि गुफाएं'' भारत में चट्टानों को काटकर बनायी जाने वाली गुफाओं की वास्तुकला के सबसे आरंभिक उदाहरण हैं<ref name="brit"/><ref>[http://www.indian-architecture.info/ आर्किटेक्च्रल हिस्ट्री] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20080914144426/http://www.indian-architecture.info/ |date=14 सितंबर 2008 }} www.indian-architecture.info.</ref> जिनमें मौर्य काल में निर्मित वास्तुकला संबंधी विवरण मौजूद हैं और बाद की सदियों में<ref>[http://yac.bih.nic.in/Da-01.htm एन ऑवरव्यू ऑफ आर्कियोलॉजीक्ल इम्पोर्टेंस ऑफ बिहार] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20160303181914/http://yac.bih.nic.in/Da-01.htm |date=3 मार्च 2016 }} [[पुरातत्वशास्त्र|पुरातत्व]] निदेशालय बिहार सरकार.</ref> यह [[महाराष्ट्र]] में पाए जाने वाले विशाल बौद्ध [[चैत्य]] की तरह एक चलन बन गया है, जैसा कि अजंता और कार्ला गुफाओं में है और इसने चट्टानों को काटकर बनायी गयी दक्षिण एशियाई वास्तुकला की परंपराओं को काफी हद तक प्रभावित किया है।<ref name="ent"/>
* '''लोमस ऋषि गुफा''' : मेहराब की तरह के आकार वाली ऋषि गुफाएं लकड़ी की समकालीन वास्तुकला की नक़ल के रूप में हैं। द्वार के मार्ग पर हाथियों की एक पंक्ति [[स्तूप]] के स्वरूपों की ओर घुमावदार दरवाजे के
* '''सुदामा गुफा''' : यह गुफा 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट [[अशोक]] द्वारा समर्पित की गयी थी और इसमें एक आयताकार मण्डप के साथ वृत्तीय मेहराबदार कक्ष बना हुआ है।<ref>[http://www.collectbritain.co.uk/personalisation/object.cfm?uid=019PHO0000125S1U00055000 सुदामा एंड लोमस ऋषि केव्स एट बराबर हिल्स, गया] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20090408210429/http://www.collectbritain.co.uk/personalisation/object.cfm?uid=019PHO0000125S1U00055000 |date=8 अप्रैल 2009 }} ''[[ब्रिटिश पुस्तकालय|ब्रिटिश लाइब्रेरी]]'' .</ref>
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* '''करण चौपर''' (कर्ण चौपङ)<ref>[http://www.collectbritain.co.uk/personalisation/object.cfm?uid=019PHO0000125S1U00099000 कर्ण कॉपर केव, बराबर हिल्स.] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20090408210444/http://www.collectbritain.co.uk/personalisation/object.cfm?uid=019PHO0000125S1U00099000 |date=8 अप्रैल 2009 }} ''[[ब्रिटिश पुस्तकालय|ब्रिटिश लाइब्रेरी]]'' .</ref>: यह पॉलिश युक्त सतहों के साथ एक एकल आयताकार कमरे के रूप में बना हुआ है जिसमें ऐसे शिलालेख मौजूद हैं जो 245 ई.पू. के हो सकते हैं।
* '''विश्व झोपड़ी ''' : इसमें दो आयताकार कमरे मौजूद हैं
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== इन्हें भी देखें ==
1.पशुओं और अलंकरणों का चित्रण
लोमश ॠषि गुफा के घरमुख पर उत्तकिर्ण उन अलंकरणों में सबसे उपर की पट्टिका जालीनुमा (मेहराब) प्रतीत होती है किन्तु जो छिद्र बने हैं वह आर-पर नहीं बल्कि अल्प उत्तकिर्ण हैं। उपर से दुसरे पट्टिका में हाथियों का अंकन है जो दोनों तरफ से केन्द्र की तरफ जाते दिखते हैं। मौर्य कालिन स्थापत्य तथा मूर्ति कला में हाथियों का प्रचुर अंकन देखा जा सकता है। हाथियों का अंकन भगवान बुद्ध के जन्म से काफी निकटता रखता है, जिसे जातक कथाओं में देखा जा सकता है। हाथी स्तूप को दोनों तरफ से केन्द्र की ओर ले जाते अंकित किए गए हैं। यह अंकन बौद्ध धर्म को प्रशारित करने के लिए किए गए प्रयासों को बखूबी दर्शाता है। इस पंक्ति के अंत में निचे दोनों तरफ एक-एक अलग आकृति का अंकन है, जो मगरमच्छ के जैसा दिखाया गया है
पटना के निकटवर्ती क्षेत्रों में कुछ पाल कालिन
2.एक अन्य वास्तु से संबंध
लोमश ऋषि गुफा के बारे में अध्ययन करते समय एक शब्द टोडा का आना एक नए रास्ते की तरह था जो मुझे एक नए आयाम से जोड़ने का काम करती है। टोडा एक दक्षिण भारतीय कबिलाई जनजाति है जो निलगीरी के पहाड़ीयों में निवास करते हैं। यहाँ टोडाओं के आवासीय परिसर का संबंध जोड़ने का प्रयास किया गया है,
टोडा झोपड़ी के घरमुख और आंतरिक बनावट एक जैसी नजर आती है किन्तु इनके अवयव और बनाने का तरिका पूर्णतः भिन्न है। जिस तरह इन झोपड़ों का द्वार चौकोर,छोटा तथा गुम्बदाकार अलंकृत है वैसे हीं लोमश ॠषि गुफा द्वार भी है। इन झोपड़ों के आंतरिक भाग में एक चबुतरा बना होता था जो करण चौपड़ गुफा के जैसा हीं है, जिसका उपयोग बिस्तर के तौर पर किया जाता था। झोपड़ों के बाहर कुछ फासले पर एक रक्षा प्राचीर बना होता था जो उसी पहाड़ी से प्राप्त पत्थरों से बनाया जाता था।
टोडा जनजाति आजिवकों के तरह हीं पूर्णतः प्राकृतिक पर निर्भर थे और कठिन नियमों का पालन करते थे। यही कारण है कि समय के साथ इनकी संख्या घटती चली गई। 1960 के दशक में इनकी संख्या लगभग 800 हीं रह गई थी। इनका निवास भी सर्वदा पहाड़ीयों पर हीं देखा गया है।
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