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[[File:स्वामी विवेकानन्द.ogg|thumb|स्वामी विवेकानन्द]]
'''स्वामी विवेकानन्द''' ( {{lang-bn|স্বামী বিবেকানন্দ}}) ([[जन्म]]: 12 जनवरी,१८६३ - [[मृत्यु]]: ४ जुलाई,१९०२) [[वेदान्त]] के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम '''नरेन्द्र नाथ दत्त''' था। उन्होंने [[अमेरिका]] स्थित [[शिकागो]] में सन् [[१८९३]] में आयोजित [[विश्व धर्म महासभा]] में भारत की ओर से [[सनातन धर्म]] का प्रतिनिधित्व किया था। [[भारत]] का [[आध्यात्मिकता]] से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन [[अमेरिका]] और [[यूरोप]] के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने [[रामकृष्ण मिशन]] की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे [[रामकृष्ण परमहंस]] के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों" के साथ करने के लिये जाना जाता है।<ref>Dutt, Harshavardhan (2005), Immortal Speeches, नई दिल्ली: Unicorn Books, p. 121, ISBN 978-81-7806-093-4</ref> उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
 
[[कलकत्ता]] के एक कुलीन [[बंगाली]] [[कायस्थ]]परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरत मंदो मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर [[भारतीय उपमहाद्वीप]] का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] के लिए प्रस्थान किया। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, [[इंग्लैंड]] और [[यूरोप]] में [[हिंदू दर्शन]] के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को [[राष्ट्रीय युवा दिवस]] के रूप में मनाया जाता है। महान व्यक्तित्व के थे स्वामीजी।