"वैमानिक शास्त्र": अवतरणों में अंतर

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इस पुस्तक के अस्तित्व की घोषणा सन् 1952 में [[आर जी जोसयर]] (G. R. Josyer) द्वारा की गयी। जोसयर ने बताया कि यह ग्रन्थ [[पण्डित सुब्बाराय शास्त्री]] (1866–1940) द्वारा रचित है जिन्होने इसे 1918–1923 के बीच बोलकर लिखवाया। इसका एक [[हिन्दी]] अनुवाद 1959 में प्रकाशित हुआ जबकि [[संस्कृत]] पाठ के साथ अंग्रेजी अनुवाद 1973 में प्रकाशित हुआ।
 
इसमें कुल ८ अध्याय और 3000३००० श्लोक हैं। पण्डित सुब्बाराय शास्त्री के अनुसार इस ग्रंथ के मुख्य जनक रामायणकालीन महर्षि [[भारद्वाजभरद्वाज]] थे।
 
भारद्वाजभरद्वाज ने 'विमान' की परिभाषा इस प्रकार की है-
: ''वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम् ''
: ( पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे 'विमान' कहते हैं।)
 
==संरचना==
वैमानिक शास्त्र में कुल ८ अध्याय और 3000३००० श्लोक हैं।
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